ज्ञानदान: Difference between revisions
From जैनकोष
RoshanJain (talk | contribs) mNo edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(3 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
देखें [[ दान ]]। | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/6/24/338/11 </span><span class="SanskritText">त्यागो दानम् । तत्त्रिविधम् – आहारदानमभयदानं ज्ञानदानं चेति। </span>=<span class="HindiText">त्याग दान है। वह तीन प्रकार का है–आहारदान, अभयदान और '''ज्ञानदान'''।</span><br> | ||
<span class="GRef">पद्मनन्दि पंचविंशतिका/7/9-10</span> <span class="SanskritText">स्वेच्छाहारविहारजल्पनतया नीरुग्वपुर्जायते। साधूनां तु न सा ततस्तदपटु प्रायेण संभाव्यते। कुर्यादौषधपथ्यवारिभिरिदं चारित्रभारक्षमं यत्तस्मादिह वर्तते प्रशमिनां धर्मो गृहस्थोत्तमात् ।9। व्याख्याता पुस्तकदानमुन्नतधियां पाठाय भव्यात्मनां। भक्त्या यत्क्रियते श्रुताश्रयमिदं दानं तदाहुर्बुधा:। सिद्धेऽस्मिन् जननांतरेषु कतिषु त्रैलोक्यलोकोत्सवश्रीकारिप्रकटीकृताखिलजगत्कैवल्यभाजो जना:।10। </span>= <span class="HindiText">शरीर इच्छानुसार भोजन, गमन और संभाषण से नीरोग रहता है। परंतु इस प्रकार की इच्छानुसार प्रवृत्ति साधुओं के संभव नहीं है। इसलिए उनका शरीर प्राय: अस्वस्थ हो जाता है। ऐसी अवस्था में चूँकि श्रावक उस शरीर को औषध पथ्य भोजन और जल के द्वारा व्रतपरिपालन के योग्य करता है अतएव यहाँ उन मुनियों का धर्म उत्तम श्रावक के निमित्त से ही चलता है।9। उन्नत बुद्धि के धारक भव्य जीवों को जो भक्ति से पुस्तक का दान किया जाता है अथवा उनके लिए तत्त्व का व्याख्यान किया जाता है, इसे विद्वद्जन श्रुतदान (ज्ञानदान) कहते हैं। इस '''ज्ञानदान''' के सिद्ध हो जाने पर कुछ थोड़े से ही भवों में मनुष्य उस केवलज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं जिसके द्वारा संपूर्ण विश्व साक्षात् देखा जाता है। तथा जिसके प्रगट होने पर तीनों लोकों के प्राणी उत्सव की शोभा करते हैं।10।</span><br /> | |||
<span class="GRef"> सागार धर्मामृत/ पृष्ठ 161 पर फुट नोट</span>...। <span class="SanskritText">आरोग्यमौषधाज् ज्ञेयं श्रुतात्स्यात् श्रुतकेवली। </span>=<span class="HindiText">औषध दान से आरोग्य मिलता है तथा शास्त्रदान अर्थात् ('''विद्यादान''') देने से श्रुतकेवली होता है। </span><br> | |||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ दान ]]।</span> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 13: | Line 19: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> चतुर्विध दान में एक दान-ज्ञान के साधनों का दान करना । इससे जीव प्रतिष्ठा आदि प्राप्त करता है तथा नाना कलाओं का पारंगत होता है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 14.76,32.156 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> चतुर्विध दान में एक दान-ज्ञान के साधनों का दान करना । इससे जीव प्रतिष्ठा आदि प्राप्त करता है तथा नाना कलाओं का पारंगत होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_14#76|पद्मपुराण - 14.76]],32.156 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Line 23: | Line 29: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 16:32, 12 February 2024
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/6/24/338/11 त्यागो दानम् । तत्त्रिविधम् – आहारदानमभयदानं ज्ञानदानं चेति। =त्याग दान है। वह तीन प्रकार का है–आहारदान, अभयदान और ज्ञानदान।
पद्मनन्दि पंचविंशतिका/7/9-10 स्वेच्छाहारविहारजल्पनतया नीरुग्वपुर्जायते। साधूनां तु न सा ततस्तदपटु प्रायेण संभाव्यते। कुर्यादौषधपथ्यवारिभिरिदं चारित्रभारक्षमं यत्तस्मादिह वर्तते प्रशमिनां धर्मो गृहस्थोत्तमात् ।9। व्याख्याता पुस्तकदानमुन्नतधियां पाठाय भव्यात्मनां। भक्त्या यत्क्रियते श्रुताश्रयमिदं दानं तदाहुर्बुधा:। सिद्धेऽस्मिन् जननांतरेषु कतिषु त्रैलोक्यलोकोत्सवश्रीकारिप्रकटीकृताखिलजगत्कैवल्यभाजो जना:।10। = शरीर इच्छानुसार भोजन, गमन और संभाषण से नीरोग रहता है। परंतु इस प्रकार की इच्छानुसार प्रवृत्ति साधुओं के संभव नहीं है। इसलिए उनका शरीर प्राय: अस्वस्थ हो जाता है। ऐसी अवस्था में चूँकि श्रावक उस शरीर को औषध पथ्य भोजन और जल के द्वारा व्रतपरिपालन के योग्य करता है अतएव यहाँ उन मुनियों का धर्म उत्तम श्रावक के निमित्त से ही चलता है।9। उन्नत बुद्धि के धारक भव्य जीवों को जो भक्ति से पुस्तक का दान किया जाता है अथवा उनके लिए तत्त्व का व्याख्यान किया जाता है, इसे विद्वद्जन श्रुतदान (ज्ञानदान) कहते हैं। इस ज्ञानदान के सिद्ध हो जाने पर कुछ थोड़े से ही भवों में मनुष्य उस केवलज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं जिसके द्वारा संपूर्ण विश्व साक्षात् देखा जाता है। तथा जिसके प्रगट होने पर तीनों लोकों के प्राणी उत्सव की शोभा करते हैं।10।
सागार धर्मामृत/ पृष्ठ 161 पर फुट नोट...। आरोग्यमौषधाज् ज्ञेयं श्रुतात्स्यात् श्रुतकेवली। =औषध दान से आरोग्य मिलता है तथा शास्त्रदान अर्थात् (विद्यादान) देने से श्रुतकेवली होता है।
अधिक जानकारी के लिये देखें दान ।
पुराणकोष से
चतुर्विध दान में एक दान-ज्ञान के साधनों का दान करना । इससे जीव प्रतिष्ठा आदि प्राप्त करता है तथा नाना कलाओं का पारंगत होता है । पद्मपुराण - 14.76,32.156