चूर्ण: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 9/4,1,65/272/13 </span><span class="PrakritText">.......चित्तारयाणमण्णेसिं च वण्णुप्पायणकुसलाणं किरियाणिप्पण्णदव्वं णर-तुरयादिबहुसंठाणंवण्णंणामपिट्ठपिट्ठियाकणिकादिदव्वं चुण्णणकिरियाणिप्फण्णं चुण्णं णाम। ......।</span>= | |||
<span class="HindiText"> ......चूर्णन क्रिया से सिद्ध हुए पिष्ट, पिष्टिका और कणिका आदि द्रव्य को <strong>चूर्ण</strong> कहते हैं।</span><br> | |||
<li> '''आहार का एक दोष–देखें''' [[ आहार#II.4 | आहार - II.4]]; </li> | |||
<span class="GRef">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 421-477 </span><p class="PrakritText">....... पुव्वीपच्छा संथुदि विज्जमंते य '''चुण्णजोगे''' य। उप्पादणा य दोसो सोलसमो मूलकम्मे य ॥446॥ ....... ॥62॥</p> | |||
<p class="HindiText">........- धात्री दोष, दूत, निमित्त, आजीव, वनीपक, चिकित्सक, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, ये दस दोष। तथा पूर्व संस्तुति, पश्चात् संस्तुति, विद्या, मंत्र, '''चूर्णयोग''', मूल कर्म छह दोष ये हैं।</p> | |||
<span class="GRef">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 447-461 </span><p class="PrakritText">सोलह उत्पादन दोष-....... णेत्तस्संजणचुण्णं भूसणचुण्णं च गत्त सोभयरं। चुण्णं तेणुप्पदो '''चुण्णयदोसो''' हवदि एसो ॥460॥ अवसाणं वसियसणं संजोजयणं च विप्पजुत्ताणं। भणिदं तु मूलकम्मं एदे उप्पादणा दोसा ॥461॥</p> <p class="HindiText">...... '''चूर्ण दोष''' - नेत्रों का अंजन, भूषण साफ करनेका चूर्ण, शरीर की शोभा बढानेवाला चूर्ण - इन चूर्णों की विधि बतलाकर आहार ले वहाँ चूर्ण दोष होता है.... ॥460॥ </p><br> | |||
<li>'''वस्तिका का एक दोष–देखें''' [[ वस्तिका ]]। </li> | |||
<span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका 230/444/6 </span><span class="SanskritText">उत्पादनदोषा.......विद्यया, मंत्रेण, '''चूर्ण प्रयोगेण''' वा गृहिणं वशे स्थापयित्वा लब्धा । मूलकर्मणा वा भिन्नकन्यायोनिसंस्थापना मूलकर्म । विरक्तानां अनुरागजननं वा । उत्पादनाख्योऽभिहितो दोषः षोडशप्रकारः ।</span> <span class="HindiText">...... विद्या, मंत्र अथवा '''चूर्ण प्रयोग''' से गृहस्थ को अपने वशकर वसतिका की प्राप्ति कर लेना '''विद्यादि''' दोष हैं । </li> | |||
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[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 09:10, 2 September 2023
- द्रव्य निक्षेप का एक भेद–देखें निक्षेप - 5.9। षट्खंडागम/9/4,1/ सूत्र 65/272
- आहार का एक दोष–देखें आहार - II.4; मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 421-477
- वस्तिका का एक दोष–देखें वस्तिका । भगवती आराधना / विजयोदया टीका 230/444/6 उत्पादनदोषा.......विद्यया, मंत्रेण, चूर्ण प्रयोगेण वा गृहिणं वशे स्थापयित्वा लब्धा । मूलकर्मणा वा भिन्नकन्यायोनिसंस्थापना मूलकर्म । विरक्तानां अनुरागजननं वा । उत्पादनाख्योऽभिहितो दोषः षोडशप्रकारः । ...... विद्या, मंत्र अथवा चूर्ण प्रयोग से गृहस्थ को अपने वशकर वसतिका की प्राप्ति कर लेना विद्यादि दोष हैं ।
तद्वयतिरिक्त नो आगम के अनेक भेद हैं, उनमें से एक भेद चूर्ण है। —
धवला 9/4,1,65/272/13 .......चित्तारयाणमण्णेसिं च वण्णुप्पायणकुसलाणं किरियाणिप्पण्णदव्वं णर-तुरयादिबहुसंठाणंवण्णंणामपिट्ठपिट्ठियाकणिकादिदव्वं चुण्णणकिरियाणिप्फण्णं चुण्णं णाम। ......।= ......चूर्णन क्रिया से सिद्ध हुए पिष्ट, पिष्टिका और कणिका आदि द्रव्य को चूर्ण कहते हैं।
....... पुव्वीपच्छा संथुदि विज्जमंते य चुण्णजोगे य। उप्पादणा य दोसो सोलसमो मूलकम्मे य ॥446॥ ....... ॥62॥
........- धात्री दोष, दूत, निमित्त, आजीव, वनीपक, चिकित्सक, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, ये दस दोष। तथा पूर्व संस्तुति, पश्चात् संस्तुति, विद्या, मंत्र, चूर्णयोग, मूल कर्म छह दोष ये हैं।
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 447-461सोलह उत्पादन दोष-....... णेत्तस्संजणचुण्णं भूसणचुण्णं च गत्त सोभयरं। चुण्णं तेणुप्पदो चुण्णयदोसो हवदि एसो ॥460॥ अवसाणं वसियसणं संजोजयणं च विप्पजुत्ताणं। भणिदं तु मूलकम्मं एदे उप्पादणा दोसा ॥461॥
...... चूर्ण दोष - नेत्रों का अंजन, भूषण साफ करनेका चूर्ण, शरीर की शोभा बढानेवाला चूर्ण - इन चूर्णों की विधि बतलाकर आहार ले वहाँ चूर्ण दोष होता है.... ॥460॥