एकलव्य: Difference between revisions
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<span class="GRef">पांडवपुराण /सर्ग (श्लोक</span> <p class="HindiText">गुरु द्रोणाचार्य का शिष्य एक भील था, स्तूप में गुरु द्रोणाचार्य की स्थापना करके उनसे शब्दार्थ वेधनी विद्या प्राप्त की (10/223); फिर गुरु द्रोणाचार्य के अर्जुन सहित साक्षात् दर्शन होने पर गुरु की आज्ञानुसार गुरु को अपने दाहिने हाथ का अँगूठा अर्पण करके उसने अपनी गुरुभक्ति का परिचय दिया। (10/262) </p> | |||
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<div class="HindiText"> <p> वनवासी भील, गुरु द्रोणाचार्य का परोक्ष शिष्य । इसने अपने परोक्ष गुरु से शब्द बेधि-विद्या में निपुणता प्राप्त की थी । इसने गुरु के साक्षात् दर्शन नहीं किये थे, एक लौहस्तूप में ही उसने गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा अंकित कर ली थी । वह इसी स्तूप की वंदना करके | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> वनवासी भील, गुरु द्रोणाचार्य का परोक्ष शिष्य । इसने अपने परोक्ष गुरु से शब्द बेधि-विद्या में निपुणता प्राप्त की थी । इसने गुरु के साक्षात् दर्शन नहीं किये थे, एक लौहस्तूप में ही उसने गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा अंकित कर ली थी । वह इसी स्तूप की वंदना करके शब्द बेधिनी धनुर्विद्या प्राप्त कर सका था । इसने अर्जुन के साथ आये हुए गुरु के दर्शन कर गुरु की आज्ञानुसार अपने दाएं हाथ का अंगूठा अर्पण करते हुए अपनी गुरुभक्ति का परिचय भी दिया था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 10.205, 216, 223, 224, 262-267 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पांडवपुराण /सर्ग (श्लोक
गुरु द्रोणाचार्य का शिष्य एक भील था, स्तूप में गुरु द्रोणाचार्य की स्थापना करके उनसे शब्दार्थ वेधनी विद्या प्राप्त की (10/223); फिर गुरु द्रोणाचार्य के अर्जुन सहित साक्षात् दर्शन होने पर गुरु की आज्ञानुसार गुरु को अपने दाहिने हाथ का अँगूठा अर्पण करके उसने अपनी गुरुभक्ति का परिचय दिया। (10/262)
पुराणकोष से
वनवासी भील, गुरु द्रोणाचार्य का परोक्ष शिष्य । इसने अपने परोक्ष गुरु से शब्द बेधि-विद्या में निपुणता प्राप्त की थी । इसने गुरु के साक्षात् दर्शन नहीं किये थे, एक लौहस्तूप में ही उसने गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा अंकित कर ली थी । वह इसी स्तूप की वंदना करके शब्द बेधिनी धनुर्विद्या प्राप्त कर सका था । इसने अर्जुन के साथ आये हुए गुरु के दर्शन कर गुरु की आज्ञानुसार अपने दाएं हाथ का अंगूठा अर्पण करते हुए अपनी गुरुभक्ति का परिचय भी दिया था । पांडवपुराण 10.205, 216, 223, 224, 262-267