चित्रकर्म: Difference between revisions
From जैनकोष
Amanjain7585 (talk | contribs) |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
देखें [[ निक्षेप#4 | निक्षेप - 4]]। | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/5/17/4 </span><span class="SanskritText"> काष्ठपुस्तचित्रकर्माक्षनिक्षेपादिषु सोऽयं इति स्थाप्यमाना स्थापना।</span> = <span class="HindiText">काष्ठकर्म, पुस्तकर्म, चित्रकर्म और अक्षनिक्षेप आदि में ‘यह वह है’ इस प्रकार स्थापित करने की स्थापना कहते हैं। </span> | ||
<span class="HindiText">देखें [[ निक्षेप#4 | निक्षेप - 4]]।</span> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 12: | Line 15: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> चित्रकला । इसके हो प्रकार थे । रेखाचित्र और वर्णचित्र । इसमें तीनों आयाम-लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई दिखाये जाते थे । श्रीमती का चित्र इसी प्रकार का था । इसमें हाव, भाव का प्रदर्शन भी बड़ा हृदयहारी था । <span class="GRef"> महापुराण 7.108-120 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> चित्रकला । इसके हो प्रकार थे । रेखाचित्र और वर्णचित्र । इसमें तीनों आयाम-लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई दिखाये जाते थे । श्रीमती का चित्र इसी प्रकार का था । इसमें हाव, भाव का प्रदर्शन भी बड़ा हृदयहारी था । <span class="GRef"> महापुराण 7.108-120 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/1/5/17/4 काष्ठपुस्तचित्रकर्माक्षनिक्षेपादिषु सोऽयं इति स्थाप्यमाना स्थापना। = काष्ठकर्म, पुस्तकर्म, चित्रकर्म और अक्षनिक्षेप आदि में ‘यह वह है’ इस प्रकार स्थापित करने की स्थापना कहते हैं।
देखें निक्षेप - 4।
पुराणकोष से
चित्रकला । इसके हो प्रकार थे । रेखाचित्र और वर्णचित्र । इसमें तीनों आयाम-लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई दिखाये जाते थे । श्रीमती का चित्र इसी प्रकार का था । इसमें हाव, भाव का प्रदर्शन भी बड़ा हृदयहारी था । महापुराण 7.108-120