आरंभ त्याग प्रतिमा: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef">रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 144</span> <p class="SanskritText">सेवाकृषिवाणिज्यप्रमुखादारम्भतो व्युपारमति।प्राणातिपातहेतोर्योऽसावारंभविनिवृत्तः ॥144॥</p> | |||
<p class="HindiText">= जो जीव हिंसा के कारण नौकरी खेती व्यापारादि के आरंभ से विरक्त है वह | <p class="HindiText">= जो जीव हिंसा के कारण नौकरी खेती व्यापारादि के आरंभ से विरक्त है वह आरंभत्याग प्रतिमा का धारी है।</p> | ||
<p>( | <p><span class="GRef">( गुणभद्र श्रावकाचार 180)</span> <span class="GRef">( कार्तिकेयाुनप्रेक्षा 385)</span>; <span class="GRef">(सागार धर्मामृत अधिकार 7/21)</span></p> | ||
< | <span class="GRef">वसुनंदि श्रावकाचार गाथा 298</span> <p class=" PrakritText ">जं किं पि गिहारंभं बहु थोगं वा सयाविवज्जेइ। आरंभणियत्तमई सो अट्ठमु सावओ भणिओ ॥298॥</p> | ||
<p class="HindiText">= जो कुछ भी थोड़ा या बहुत गृह संबंधी आरंभ होता है उसे जो सदा के लिए त्याग करता है, वह आरंभ से निवृत्त हुई है बुद्धि जिसकी, ऐसा | <p class="HindiText">= जो कुछ भी थोड़ा या बहुत गृह संबंधी आरंभ होता है उसे जो सदा के लिए त्याग करता है, वह आरंभ से निवृत्त हुई है बुद्धि जिसकी, ऐसा आरंभत्यागी आठवाँ श्रावक कहा गया है।</p> | ||
< | <span class="GRef">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 45/195</span> <p class="SanskritText">आरंभादिसमस्तव्यापारनिवृत्तोऽष्टमः।</p> | ||
<p class="HindiText">= आरंभादि संपूर्ण व्यापार के त्याग से अष्टम प्रतिमा (होती है।)</p> | <p class="HindiText">= आरंभादि संपूर्ण व्यापार के त्याग से अष्टम प्रतिमा (होती है।)</p> | ||
<p>2. आरंभ त्याग व सचित त्याग | <p class="HindiText">2. आरंभ त्याग व सचित त्याग प्रतिमा में अंतर</p> | ||
< | <span class="GRef">लांटी संहिता अधिकार 7/32-33</span> <p class="SanskritText">इतः पूर्वमतीचारो विद्यते वधकर्मणः। सचित्तस्पर्शनत्वाद्वा स्वहस्तेनांभसां यथा ॥32॥ इतः प्रभृति यद्द्रव्यं सचित्तं सलिलादिवत्। न स्पर्शति स्वहस्तेन बह्वारंभस्य का कथा ॥33॥</p> | ||
<p class="HindiText">= इस आठवीं प्रतिमा स्वीकार करने से पहले वह सचित पदार्थों का स्पर्श करता था. जैसे-अपने हाथ से जल भरता था, छानता था और फिर उसे प्रासुक करता था, इस प्रकार करने से उसे अहिंसा व्रत का अतिचार लगता था, परंतु इस आठवीं प्रतिमा को धारण कर लेने के अनंतर वह जलादि सचित्त द्रव्यों को अपने हाथ से छूता भी नहीं है। फिर भला अधिक आरंभ करने की तो बात ही क्या है।</p> | <p class="HindiText">= इस आठवीं प्रतिमा स्वीकार करने से पहले वह सचित पदार्थों का स्पर्श करता था. जैसे-अपने हाथ से जल भरता था, छानता था और फिर उसे प्रासुक करता था, इस प्रकार करने से उसे अहिंसा व्रत का अतिचार लगता था, परंतु इस आठवीं प्रतिमा को धारण कर लेने के अनंतर वह जलादि सचित्त द्रव्यों को अपने हाथ से छूता भी नहीं है। फिर भला अधिक आरंभ करने की तो बात ही क्या है।</p> | ||
Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 144
सेवाकृषिवाणिज्यप्रमुखादारम्भतो व्युपारमति।प्राणातिपातहेतोर्योऽसावारंभविनिवृत्तः ॥144॥
= जो जीव हिंसा के कारण नौकरी खेती व्यापारादि के आरंभ से विरक्त है वह आरंभत्याग प्रतिमा का धारी है।
( गुणभद्र श्रावकाचार 180) ( कार्तिकेयाुनप्रेक्षा 385); (सागार धर्मामृत अधिकार 7/21)
वसुनंदि श्रावकाचार गाथा 298
जं किं पि गिहारंभं बहु थोगं वा सयाविवज्जेइ। आरंभणियत्तमई सो अट्ठमु सावओ भणिओ ॥298॥
= जो कुछ भी थोड़ा या बहुत गृह संबंधी आरंभ होता है उसे जो सदा के लिए त्याग करता है, वह आरंभ से निवृत्त हुई है बुद्धि जिसकी, ऐसा आरंभत्यागी आठवाँ श्रावक कहा गया है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 45/195
आरंभादिसमस्तव्यापारनिवृत्तोऽष्टमः।
= आरंभादि संपूर्ण व्यापार के त्याग से अष्टम प्रतिमा (होती है।)
2. आरंभ त्याग व सचित त्याग प्रतिमा में अंतर
लांटी संहिता अधिकार 7/32-33
इतः पूर्वमतीचारो विद्यते वधकर्मणः। सचित्तस्पर्शनत्वाद्वा स्वहस्तेनांभसां यथा ॥32॥ इतः प्रभृति यद्द्रव्यं सचित्तं सलिलादिवत्। न स्पर्शति स्वहस्तेन बह्वारंभस्य का कथा ॥33॥
= इस आठवीं प्रतिमा स्वीकार करने से पहले वह सचित पदार्थों का स्पर्श करता था. जैसे-अपने हाथ से जल भरता था, छानता था और फिर उसे प्रासुक करता था, इस प्रकार करने से उसे अहिंसा व्रत का अतिचार लगता था, परंतु इस आठवीं प्रतिमा को धारण कर लेने के अनंतर वह जलादि सचित्त द्रव्यों को अपने हाथ से छूता भी नहीं है। फिर भला अधिक आरंभ करने की तो बात ही क्या है।