आर्त्त: Difference between revisions
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<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/28/445/10</span> <p class="SanskritText">ऋतुं दुःखं, अथवा अर्दनमार्त्तिर्वा, तत्र भवमार्त्तम्।</p> | |||
<p class="HindiText">= ऋत, दुःख अथवा अर्दन-आर्त्ति इनमें होना सो आर्त्त है।</p> | <p class="HindiText">= ऋत, दुःख अथवा अर्दन-आर्त्ति इनमें होना सो आर्त्त है।</p> | ||
<p>(राजवार्तिक अध्याय 9/28/1/627/26), ( भावपाहुड़ / मूल या टीका गाथा 78/226)</p> | <p><span class="GRef">(राजवार्तिक अध्याय 9/28/1/627/26)</span>, <span class="GRef">(भावपाहुड़ / मूल या टीका गाथा 78/226)</span></p> | ||
Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/28/445/10
ऋतुं दुःखं, अथवा अर्दनमार्त्तिर्वा, तत्र भवमार्त्तम्।
= ऋत, दुःख अथवा अर्दन-आर्त्ति इनमें होना सो आर्त्त है।
(राजवार्तिक अध्याय 9/28/1/627/26), (भावपाहुड़ / मूल या टीका गाथा 78/226)