तत्प्रतियोगी प्रत्यभिज्ञान: Difference between revisions
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<span class="GRef"> परीक्षामुख/3/5-10 </span>... <span class="SanskritText">प्रत्यभिज्ञानं तदेवेदं तत्सदृश तद्विलक्षणं तत्प्रतियोगीत्यादि ।5। यथा स एवायं देवदत्तः।6। गोसदृशो गवयः ।7। गोविलक्षणो महिष: ।8। इदमस्माद्दूरं ।9। वृक्षोऽयमित्यादि ।10। </span><br /> | |||
/ | <span class="GRef"> न्यायदीपिका/3/8-9/56/5 </span><span class="SanskritText">यथा स एवाऽय जिनदत्तः, गोसदृशो गवयः, गोविलक्षणमहिष इत्यादि ।8. अत्र हि पूर्वस्मिन्नुदाहरणे जिनदत्तस्य पूर्वोत्तरदशाद्वयव्यापकमेकत्वं प्रत्यभिज्ञानस्य विषयः । तदिदमेकत्वप्रत्यभिज्ञानम् । द्वितीयेतु पूर्वानुभूतगोप्रतियोगिकं गवयनिष्ठ सादृश्यम् । तदिदं सादृश्यप्रत्यभिज्ञानम् । तृतीये तु पुनः प्रागनुभूतगोप्रतियोगिक महिषनिष्ठ वैसादृश्यम् । तदिदं वैसादृश्यप्रत्यभिज्ञानम् ।</span> =<span class="HindiText">जैसे वही यह जिनदत्त है, गौ के समान गवय होता है, गाय से भिन्न भैंसा होता है, इत्यादि । यहां | ||
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<li class="HindiText"> पहले उदाहरण में जिनदत्त की पूर्व और उत्तर अवस्था में रहने वाली एकता प्रत्यभिज्ञान का विषय है । इसी को एकत्व प्रत्यभिज्ञान कहते हैं । </li> | |||
<li class="HindiText"> दूसरे उदाहरण में, पहले अनुभव की हुई गाय को लेकर गवय में रहने वाली सदृश्यता प्रत्यभिज्ञान का विषय है . इस प्रकार के ज्ञान को सादृश्य प्रत्यभिज्ञान कहते हैं । </li> | |||
<li class="HindiText"> तीसरे उदाहरण में पहले अनुभव की हुई गाय को लेकर भैंसा में रहने वाली विसदृशता प्रत्यभिज्ञान का विषय है, इस तरह का ज्ञान वैसादृश्य प्रत्यभिज्ञान कहलाता है । </li> | |||
<li class="HindiText"> यह प्रदेश उस प्रदेश से दूर है इस प्रकार का ज्ञान '''तत्प्रतियोगी''' नाम का प्रत्यभिज्ञान कहलाता है । </li> | |||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
परीक्षामुख/3/5-10 ... प्रत्यभिज्ञानं तदेवेदं तत्सदृश तद्विलक्षणं तत्प्रतियोगीत्यादि ।5। यथा स एवायं देवदत्तः।6। गोसदृशो गवयः ।7। गोविलक्षणो महिष: ।8। इदमस्माद्दूरं ।9। वृक्षोऽयमित्यादि ।10।
न्यायदीपिका/3/8-9/56/5 यथा स एवाऽय जिनदत्तः, गोसदृशो गवयः, गोविलक्षणमहिष इत्यादि ।8. अत्र हि पूर्वस्मिन्नुदाहरणे जिनदत्तस्य पूर्वोत्तरदशाद्वयव्यापकमेकत्वं प्रत्यभिज्ञानस्य विषयः । तदिदमेकत्वप्रत्यभिज्ञानम् । द्वितीयेतु पूर्वानुभूतगोप्रतियोगिकं गवयनिष्ठ सादृश्यम् । तदिदं सादृश्यप्रत्यभिज्ञानम् । तृतीये तु पुनः प्रागनुभूतगोप्रतियोगिक महिषनिष्ठ वैसादृश्यम् । तदिदं वैसादृश्यप्रत्यभिज्ञानम् । =जैसे वही यह जिनदत्त है, गौ के समान गवय होता है, गाय से भिन्न भैंसा होता है, इत्यादि । यहां
- पहले उदाहरण में जिनदत्त की पूर्व और उत्तर अवस्था में रहने वाली एकता प्रत्यभिज्ञान का विषय है । इसी को एकत्व प्रत्यभिज्ञान कहते हैं ।
- दूसरे उदाहरण में, पहले अनुभव की हुई गाय को लेकर गवय में रहने वाली सदृश्यता प्रत्यभिज्ञान का विषय है . इस प्रकार के ज्ञान को सादृश्य प्रत्यभिज्ञान कहते हैं ।
- तीसरे उदाहरण में पहले अनुभव की हुई गाय को लेकर भैंसा में रहने वाली विसदृशता प्रत्यभिज्ञान का विषय है, इस तरह का ज्ञान वैसादृश्य प्रत्यभिज्ञान कहलाता है ।
- यह प्रदेश उस प्रदेश से दूर है इस प्रकार का ज्ञान तत्प्रतियोगी नाम का प्रत्यभिज्ञान कहलाता है ।
- यह वृक्ष है जो हमने सुना था । इत्यादि अनेक प्रकार का प्रत्यभिज्ञान होता है ।
अधिक जानकारी के लिये देखें प्रत्यभिज्ञान ।