बहुरूपिणी: Difference between revisions
From जैनकोष
mNo edit summary |
(Imported from text file) |
||
(2 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
भगवान् नेमीनाथ की यक्षिणी- देखें [[ तीर्थंकर#5.3 | तीर्थंकर - 5.3 ]]। | <div class="HindiText">भगवान् नेमीनाथ की यक्षिणी- देखें [[ तीर्थंकर#5.3 | तीर्थंकर - 5.3 ]]। | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 13: | Line 14: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> अनेक रूप बनाने की शक्तिशाली एक विद्या । इस पर देवकृत विघ्न नहीं होते । यह विद्या चौबीस दिन में सिद्ध होती है । जिसे यह सिद्ध हो जाती है वह इंद्र से भी अजेय हो जाता है । इसकी साधना के समय साधक को क्रोधजयी होना पड़ता है । <span class="GRef"> महापुराण 14.141, 70. 3-4, 94, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 67.6 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> अनेक रूप बनाने की शक्तिशाली एक विद्या । इस पर देवकृत विघ्न नहीं होते । यह विद्या चौबीस दिन में सिद्ध होती है । जिसे यह सिद्ध हो जाती है वह इंद्र से भी अजेय हो जाता है । इसकी साधना के समय साधक को क्रोधजयी होना पड़ता है । <span class="GRef"> महापुराण 14.141, 70. 3-4, 94, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_67#6|पद्मपुराण - 67.6]] </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
भगवान् नेमीनाथ की यक्षिणी- देखें तीर्थंकर - 5.3 ।
पुराणकोष से
अनेक रूप बनाने की शक्तिशाली एक विद्या । इस पर देवकृत विघ्न नहीं होते । यह विद्या चौबीस दिन में सिद्ध होती है । जिसे यह सिद्ध हो जाती है वह इंद्र से भी अजेय हो जाता है । इसकी साधना के समय साधक को क्रोधजयी होना पड़ता है । महापुराण 14.141, 70. 3-4, 94, पद्मपुराण - 67.6