तपाचार: Difference between revisions
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<span class="GRef"> प्रवचनसार तत्त्व प्रदीपिका 202/250</span> </span><p class="SanskritText">अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्याग विविक्तशय्यासनकायक्लेशप्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्ग लक्षणतपाचारः।</p> | |||
<p class="HindiText">= अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्त शय्यासन, कायक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग तपाचार है।</p> | |||
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<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> पंचाचार में चतुर्थ आचार । इसमें बाह्य और आभ्यंतर दोनों प्रकार के तप किये जाते हैं । इससे संयम की रक्षा होती हैं । <span class="GRef"> महापुराण 20.173, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 23.58 </span></p> | |||
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Latest revision as of 14:57, 16 February 2024
सिद्धांतकोष से
प्रवचनसार तत्त्व प्रदीपिका 202/250
अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्याग विविक्तशय्यासनकायक्लेशप्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्ग लक्षणतपाचारः।
= अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्त शय्यासन, कायक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग तपाचार है।
अधिक जानकारी के लिए देखें आचार ।
पुराणकोष से
पंचाचार में चतुर्थ आचार । इसमें बाह्य और आभ्यंतर दोनों प्रकार के तप किये जाते हैं । इससे संयम की रक्षा होती हैं । महापुराण 20.173, पांडवपुराण 23.58