त्रायस्त्रिंश: Difference between revisions
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- त्रायस्त्रिंश देव का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/4/4/339/3 मंत्रिपुरोहितस्थानीयास्त्रायस्त्रिंशा:। त्रयस्त्रिंशदेव त्रायस्त्रिंशा:। =जो मंत्री और पुरोहित के समान हैं वे त्रायस्त्रिंश कहलाते हैं। ये तैंतीस होते हैं इसलिए त्रायस्त्रिंश कहलाते हैं। ( राजवार्तिक/4/4/3/412 ); ( महापुराण/22/25 )
तिलोयपण्णत्ति/3/65 ...। पुत्तणिहा तेत्तीसत्तिदसा...।65। =त्रायस्त्रिंश देव पुत्र के सदृश होते हैं। ( त्रिलोकसार/224 )
- भवनवासी व स्वर्गवासी इंद्रों के परिवारों में त्रायस्त्रिंश देवों का निर्देश–देखें भवनवासी आदि भेद ।
- कल्पवासी इंद्रों के त्रायस्त्रिंशदेवों का परिमाण
तिलोयपण्णत्ति/8/286,319 पडिइदाणं सामाणियाण तेत्तीसमुखराणं च। दसभेदा परिवारा णियइंदसमा य पत्तेक्कं।286। पडिइंदादितियस्स य णियणियइंदेहिं सरिसदेवीओ। संखाए णामेहिं विक्किरियारिद्धि चत्तारि।319। तप्परिवारा कमसो चउएक्कसहस्सयाणिं पंचसया। अड्ढाईंज्जसयाणि तद्दलतेस तद्दलतेसट्ठिबत्तीसं।320। =प्रतींद्र, सामानिक और त्रायस्त्रिंश देवों में से प्रत्येक के दश प्रकार के परिवार अपने इंद्र के समान होते हैं।286। प्रतींद्रादिक तीन की देवियाँ संख्या, नाम, विक्रिया और ऋद्धि, इन चारों में अपने-अपने इंद्रों के सदृश हैं।319। (देखें स्वर्ग - 3)। उनके परिवार का प्रमाण क्रम से 4000, 2000, 1000, 500, 250, 125, 63, 32 हैं।
पुराणकोष से
इंद्र के प्रिय तैंतीस देव । महापुराण 10. 188, 22.25, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.129, 14.29