अनुदिश: Difference between revisions
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<p class="HindiText"> <b>प्रश्न</b> - | <p class="HindiText"> <b>प्रश्न</b> - अनुदिश से क्या तात्पर्य है? <br> | ||
<b>उत्तर</b> - अनुदिश अर्थात् प्रत्येक | <b>उत्तर</b> - अनुदिश अर्थात् प्रत्येक दिशा में वर्तमान विमान। अर्थात् जो प्रत्येक आठ दिशाओं में पाये जायें, वे अनुदिश हैं। <br> | ||
क्योंकि अनुदिश विमान एक | क्योंकि अनुदिश विमान एक मध्य में है तथा दिशाओं व विदिशाओं में आठ हैं। अतः इन विमानों को अनुदिश कहते हैं। <br> | ||
2. कल्पातीत स्वर्गों का एक भेद. - देखें [[ स्वर्ग#5.2 | स्वर्ग - 5.2]]।</p> | 2. कल्पातीत स्वर्गों का एक भेद. - देखें [[ स्वर्ग#5.2 | स्वर्ग - 5.2]]।</p> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानों के मध्य स्थित नौ विमान ।इनके नाम है― 1. आदित्य, 2. अर्चि 3. अर्चिमालिनी 4. वज्र 5. वैरोचन 6. सौम्य 7. सौम्यरूपक 8. अंक और 9. स्फुटिक । <br>इन विमानों के निवासी देव कल्पातीत कहे जाते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.150, 6.39-40, 63-64 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानों के मध्य स्थित नौ विमान ।इनके नाम है― 1. आदित्य, 2. अर्चि 3. अर्चिमालिनी 4. वज्र 5. वैरोचन 6. सौम्य 7. सौम्यरूपक 8. अंक और 9. स्फुटिक । <br>इन विमानों के निवासी देव कल्पातीत कहे जाते हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#150|हरिवंशपुराण - 3.150]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#39|6.39-40]] , [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#63|63-64]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) समवसरण मे स्थित नौ स्तूप । इन स्तूपों में सभी अनुदिश विमान प्रत्यक्ष दिखते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.101 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) समवसरण मे स्थित नौ स्तूप । इन स्तूपों में सभी अनुदिश विमान प्रत्यक्ष दिखते हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_57#101|हरिवंशपुराण - 57.101]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) कठिन तप से प्राप्य अच्युत एवं आनत स्वर्गों का इस नाम का एक विमान । रानी सुप्रभा इसी विमान में देव हुई थी । <span class="GRef"> महापुराण 7.44,63-24 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) कठिन तप से प्राप्य अच्युत एवं आनत स्वर्गों का इस नाम का एक विमान । रानी सुप्रभा इसी विमान में देव हुई थी । <span class="GRef"> महापुराण 7.44,63-24 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
राजवार्तिक अध्याय 4/19,5/225/1
किमनुदिशमिति। प्रतिदिशमित्यर्थः।
प्रश्न - अनुदिश से क्या तात्पर्य है?
उत्तर - अनुदिश अर्थात् प्रत्येक दिशा में वर्तमान विमान। अर्थात् जो प्रत्येक आठ दिशाओं में पाये जायें, वे अनुदिश हैं।
क्योंकि अनुदिश विमान एक मध्य में है तथा दिशाओं व विदिशाओं में आठ हैं। अतः इन विमानों को अनुदिश कहते हैं।
2. कल्पातीत स्वर्गों का एक भेद. - देखें स्वर्ग - 5.2।
पुराणकोष से
(1) ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानों के मध्य स्थित नौ विमान ।इनके नाम है― 1. आदित्य, 2. अर्चि 3. अर्चिमालिनी 4. वज्र 5. वैरोचन 6. सौम्य 7. सौम्यरूपक 8. अंक और 9. स्फुटिक ।
इन विमानों के निवासी देव कल्पातीत कहे जाते हैं । हरिवंशपुराण - 3.150, 6.39-40 , 63-64
(2) समवसरण मे स्थित नौ स्तूप । इन स्तूपों में सभी अनुदिश विमान प्रत्यक्ष दिखते हैं । हरिवंशपुराण - 57.101
(3) कठिन तप से प्राप्य अच्युत एवं आनत स्वर्गों का इस नाम का एक विमान । रानी सुप्रभा इसी विमान में देव हुई थी । महापुराण 7.44,63-24