देवमूढता: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> <p> तत्त्वों के यथार्थ ज्ञान में बाधक कुदृष्टि । यह तीन प्रकार को होती है― '''दैवमूढ़ता''', लोकमूढ़ता और पाखंडिमूढ़ता । इन मूढ़ताओं से आविष्ट प्राणी तत्त्वों को देखता हुआ भी नहीं देखता है । इनके त्याग से विशुद्ध सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है । <span class="GRef"> महापुराण 9.122, 128, 140 </span></p> | |||
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तत्त्वों के यथार्थ ज्ञान में बाधक कुदृष्टि । यह तीन प्रकार को होती है― दैवमूढ़ता, लोकमूढ़ता और पाखंडिमूढ़ता । इन मूढ़ताओं से आविष्ट प्राणी तत्त्वों को देखता हुआ भी नहीं देखता है । इनके त्याग से विशुद्ध सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है । महापुराण 9.122, 128, 140
देखें मूढता ।