पल्यंक: Difference between revisions
From जैनकोष
Jagrti jain (talk | contribs) mNo edit summary |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText"> <p> एक आसन । इस आसन में अंक में बाये हाथ की हथेली पर दायें हाथ की हथेली रहती है । दोनों हाथों की हथेलियाँ ऊपर की ओर होती हैं । आँखों को न तो अधिक खोला जाता है न बिल्कुल बंद किया जाता है । दृष्टि नासाग्र होती है । मुख बंद और शरीर सम, सरल तथा निश्चल होता है । यह आसन धर्मध्यान के लिए सुखकर होता है । <span class="GRef"> महापुराण 21.60-62, 72, 34.188 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक आसन । इस आसन में अंक में बाये हाथ की हथेली पर दायें हाथ की हथेली रहती है । दोनों हाथों की हथेलियाँ ऊपर की ओर होती हैं । आँखों को न तो अधिक खोला जाता है न बिल्कुल बंद किया जाता है । दृष्टि नासाग्र होती है । मुख बंद और शरीर सम, सरल तथा निश्चल होता है । यह आसन धर्मध्यान के लिए सुखकर होता है । <span class="GRef"> महापुराण 21.60-62, 72, 34.188 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Line 11: | Line 11: | ||
[[Category: प]] | [[Category: प]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] | [[Category: चरणानुयोग]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 15:12, 27 November 2023
एक आसन । इस आसन में अंक में बाये हाथ की हथेली पर दायें हाथ की हथेली रहती है । दोनों हाथों की हथेलियाँ ऊपर की ओर होती हैं । आँखों को न तो अधिक खोला जाता है न बिल्कुल बंद किया जाता है । दृष्टि नासाग्र होती है । मुख बंद और शरीर सम, सरल तथा निश्चल होता है । यह आसन धर्मध्यान के लिए सुखकर होता है । महापुराण 21.60-62, 72, 34.188