वज्र: Difference between revisions
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<li> सौधर्म स्वर्ग का 25वाँ पटल−देखें [[ स्वर्ग#5.3 | स्वर्ग - 5.3]]। </li> | <li> सौधर्म स्वर्ग का 25वाँ पटल−देखें [[ स्वर्ग#5.3 | स्वर्ग - 5.3]]। </li> | ||
<li> बौद्ध मतानुयायी एक राजा जिसने नालंदा मठ का निर्माण कराया। समय - ई. श. 5। </li> | <li> बौद्ध मतानुयायी एक राजा जिसने नालंदा मठ का निर्माण कराया। समय - ई. श. 5। </li></span></p> | ||
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) एक समरथ नृप । कृष्ण और जरासंध के युद्ध में यह यादवों का पक्षधर था। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 50. 81- 82 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) एक समरथ नृप । कृष्ण और जरासंध के युद्ध में यह यादवों का पक्षधर था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_50#81|हरिवंशपुराण - 50.81]]- 82 </span></p> | ||
<p id="2">(2) नौ अनुदिश विमानों में तीसरा विमान। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6. 63 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) नौ अनुदिश विमानों में तीसरा विमान। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#63|हरिवंशपुराण - 6.63]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) विद्याधर नमि का वंशज। यह राजा वज्रायुध का पुत्र और राजा सुवज्र का पिता था। <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.16-21, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 13.22 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) विद्याधर नमि का वंशज। यह राजा वज्रायुध का पुत्र और राजा सुवज्र का पिता था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#16|पद्मपुराण - 5.16-21]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_13#22|हरिवंशपुराण - 13.22]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों का पच्चीसवाँ पटल। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.47 </span>देखें [[ सौधर्म ]]</p> | <p id="4" class="HindiText">(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों का पच्चीसवाँ पटल। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#47|हरिवंशपुराण - 6.47]] </span>देखें [[ सौधर्म ]]</p> | ||
<p id="5">(5) कुंडलगिरि की पूर्व दिशा का प्रथम कूट। यहाँ त्रिशिरस् देव रहता है। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.690 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) कुंडलगिरि की पूर्व दिशा का प्रथम कूट। यहाँ त्रिशिरस् देव रहता है। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#690|हरिवंशपुराण - 5.690]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) सौमनस वन के चार भवनों में प्रथम भवन। यह पंद्रह योजन चौड़ा और पच्चीस योजन ऊँचा है। परिधि पैतालीस योजन है। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.319 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) सौमनस वन के चार भवनों में प्रथम भवन। यह पंद्रह योजन चौड़ा और पच्चीस योजन ऊँचा है। परिधि पैतालीस योजन है। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#319|हरिवंशपुराण - 5.319]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) तीर्थंकर अभिनंदननाथ के प्रथम गणधर। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 347 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) तीर्थंकर अभिनंदननाथ के प्रथम गणधर। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#347|हरिवंशपुराण - 60.347]] </span></p> | ||
<p id="8">(8) वृषभदेव के अड़सठवें गणधर। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.67 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) वृषभदेव के अड़सठवें गणधर। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_12#67|हरिवंशपुराण - 12.67]] </span></p> | ||
<p id="9">(9) इंद्र का प्रसिद्ध एक अस्त्र। यह इतना मजबूत होता है कि पर्वत भी इसकी मार से चूर-चूर हो जाते हैं। <span class="GRef"> महापुराण 1. 43, 3. 158-160, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 2.243-244, 7.29, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.10 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) इंद्र का प्रसिद्ध एक अस्त्र। यह इतना मजबूत होता है कि पर्वत भी इसकी मार से चूर-चूर हो जाते हैं। <span class="GRef"> महापुराण 1. 43, 3. 158-160, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_2#243|पद्मपुराण - 2.243-244]], 7.29, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#10|हरिवंशपुराण - 2.10]] </span></p> | ||
<p id="10">(10) राजा अमर द्वारा बसाया गया एक नगर। <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.33 </span></p> | <p id="10">(10) राजा अमर द्वारा बसाया गया एक नगर। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_17#33|हरिवंशपुराण - 17.33]] </span></p> | ||
<p id="11">(11) पुंडरीकिणी नगरी का एक वैश्य इसकी स्त्री सुप्रभा और पुत्री सुमति थी। <span class="GRef"> महापुराण 71. 366 </span></p> | <p id="11">(11) पुंडरीकिणी नगरी का एक वैश्य इसकी स्त्री सुप्रभा और पुत्री सुमति थी। <span class="GRef"> महापुराण 71. 366 </span></p> | ||
<p id="12">(12) दशानन का अनुयायी एक विद्याधर राजा। यह मय का मंत्री था। <span class="GRef"> पद्मपुराण 8.269-271 </span></p> | <p id="12">(12) दशानन का अनुयायी एक विद्याधर राजा। यह मय का मंत्री था। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_8#269|पद्मपुराण - 8.269-271]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- नंदनवन, मानुषोत्तर पर्वत व रुचक पर्वत पर स्थित कूटों का नाम।−देखें लोक - 5.5।
- सौधर्म स्वर्ग का 25वाँ पटल−देखें स्वर्ग - 5.3।
- बौद्ध मतानुयायी एक राजा जिसने नालंदा मठ का निर्माण कराया। समय - ई. श. 5।
पुराणकोष से
(1) एक समरथ नृप । कृष्ण और जरासंध के युद्ध में यह यादवों का पक्षधर था। हरिवंशपुराण - 50.81- 82
(2) नौ अनुदिश विमानों में तीसरा विमान। हरिवंशपुराण - 6.63
(3) विद्याधर नमि का वंशज। यह राजा वज्रायुध का पुत्र और राजा सुवज्र का पिता था। पद्मपुराण - 5.16-21, हरिवंशपुराण - 13.22
(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों का पच्चीसवाँ पटल। हरिवंशपुराण - 6.47 देखें सौधर्म
(5) कुंडलगिरि की पूर्व दिशा का प्रथम कूट। यहाँ त्रिशिरस् देव रहता है। हरिवंशपुराण - 5.690
(6) सौमनस वन के चार भवनों में प्रथम भवन। यह पंद्रह योजन चौड़ा और पच्चीस योजन ऊँचा है। परिधि पैतालीस योजन है। हरिवंशपुराण - 5.319
(7) तीर्थंकर अभिनंदननाथ के प्रथम गणधर। हरिवंशपुराण - 60.347
(8) वृषभदेव के अड़सठवें गणधर। हरिवंशपुराण - 12.67
(9) इंद्र का प्रसिद्ध एक अस्त्र। यह इतना मजबूत होता है कि पर्वत भी इसकी मार से चूर-चूर हो जाते हैं। महापुराण 1. 43, 3. 158-160, पद्मपुराण - 2.243-244, 7.29, हरिवंशपुराण - 2.10
(10) राजा अमर द्वारा बसाया गया एक नगर। हरिवंशपुराण - 17.33
(11) पुंडरीकिणी नगरी का एक वैश्य इसकी स्त्री सुप्रभा और पुत्री सुमति थी। महापुराण 71. 366
(12) दशानन का अनुयायी एक विद्याधर राजा। यह मय का मंत्री था। पद्मपुराण - 8.269-271