पात्रदत्ति: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका आदि को पड़गाहकर सत्कारपूर्वक दान-विधि के अनुसार दान देना । ऐसे दान से कीर्ति निर्मल होती है और स्वर्ग तथा देवकुरु भोगभूमि के सुख मिलते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 3.208, 9.112, 38.35-37, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 53.161-164, 123. 105, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 13. 2-30 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका आदि को पड़गाहकर सत्कारपूर्वक दान-विधि के अनुसार दान देना । ऐसे दान से कीर्ति निर्मल होती है और स्वर्ग तथा देवकुरु भोगभूमि के सुख मिलते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 3.208, 9.112, 38.35-37, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_53#161|पद्मपुराण - 53.161-164]], 123. 105, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 13. 2-30 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका आदि को पड़गाहकर सत्कारपूर्वक दान-विधि के अनुसार दान देना । ऐसे दान से कीर्ति निर्मल होती है और स्वर्ग तथा देवकुरु भोगभूमि के सुख मिलते हैं । महापुराण 3.208, 9.112, 38.35-37, पद्मपुराण - 53.161-164, 123. 105, वीरवर्द्धमान चरित्र 13. 2-30