अनंतवीर्य: Difference between revisions
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<p id="7">(7) इस नाम का एक विद्वान् । यह जिनेंद्र के अभिषेक से स्वर्ग में सम्मानित हुआ था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 32.169 </span></p><br> | <p id="7">(7) इस नाम का एक विद्वान् । यह जिनेंद्र के अभिषेक से स्वर्ग में सम्मानित हुआ था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 32.169 </span></p><br> | ||
<p id="8">(8) मथुरा नगर का राजा । इसकी रानी मेरुमालिनी से मेरु नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण </span> | <p id="8">(8) मथुरा नगर का राजा । इसकी रानी मेरुमालिनी से मेरु नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 59.302</span> </p><br> | ||
<p id="9">(9) सिद्ध (परमेष्ठी) के आठ गुणों में एक गुण― वीर्यांतराय कर्म के क्षय से उत्पन्न अप्रतिहत सामर्थ्य । इस गुण की प्राप्ति के लिए ‘‘अनंतवीर्याय नमः’’ इस पीठिका-मंत्र का जप किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण | <p id="9">(9) सिद्ध (परमेष्ठी) के आठ गुणों में एक गुण― वीर्यांतराय कर्म के क्षय से उत्पन्न अप्रतिहत सामर्थ्य । इस गुण की प्राप्ति के लिए ‘‘अनंतवीर्याय नमः’’ इस पीठिका-मंत्र का जप किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 20.222-223, 40.14, 42.44, 99 </span> देखें [[ सिद्ध ]]</p> | ||
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Revision as of 12:32, 23 October 2022
सिद्धांतकोष से
द्रविड़संघ नंदिगण उरुंगलान्वय गुणकीर्ति सिद्धांत भट्टारक तथा देवकीर्ति पंडित के गुरु, वादिराज के दादागुरु, श्रीपाल के सधर्मा, गोणसेन पंडित के शिष्य, श्रवणबेलगोलवासी, न्याय के उद्भट विद्वान्। कृतियाँ-अकलंक कृत ग्रंथों के भाष्य सिद्धिविनिश्चयवृत्ति, प्रमाणसंग्रहालंकार। समय-ई. 975-1025
( तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा , पृष्ठ 3/40-41)। (देखें इतिहास - 6)।
पुराणकोष से
(1) भविष्यत्कालीन चौबीस वें तीर्थंकर । महापुराण 76.481, हरिवंशपुराण 60.562
(2) तीर्थंकर ऋषभनाथ का पुत्र, भरतेश का ओजस्वी और चरम शरीरी अनुज । महापुराण 16. 3-4
भरत की अधीनता स्वीकार करने के लिए कहे जाने पर इसने अधीनता स्वीकार न करके ऋषभदेव के समीप दीक्षा ग्रहण कर ली थी तथा मोक्ष प्राप्त किया था । महापुराण 24.181
आठवें पूर्वभव में यह हस्तिनापुर नगर में सागरदत्त वैश्य के उग्रसेन नामक पुत्र, सातवें पूर्वभव में व्याप्त, महापुराण श् 8.222-223, 226,
छठे पूर्वभव में उत्तर कुरुक्षेत्र में आर्य, पाँचवें पूर्वभव में ऐशान स्वर्ग में चित्रांगद देव, महापुराण 9.90, 187-189,
चौथे पूर्वभव में राजा विभीषण और उनकी रानी प्रियदत्ता के वरदत्त नामक पुत्र, तीसरे पूर्वभव में अच्युत स्वर्ग में देव, महापुराण 10. 149, 172,
दूसरे पूर्वभव में विजय नामक राजपुत्र और पहले पूर्वभव में स्वर्ग में अहमिंद्र हुआ था । महापुराण 11.10, 160,
इसका अपरनाम महासेन था । महापुराण 47.370-31
(3) दत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी के राजा स्तिमितसागर तथा उसकी रानी अनुमति का पुत्र । पूर्वभव में यह स्वस्तिक विमान में मणिचूल नाम का देव था । राज्य पाकर नृत्य देखने में लीन होने से यह नारद की विनय करना भूल गया था जिसके फलस्वरूप नारद ने दमितारि को इससे युद्ध करने भेजा था । दमितारि के आने का समाचार पाकर यह नर्तकी के वेष में दमितारि के निकट गया था और उसकी पुत्री कनकश्री का हरण कर इसने दमितारि को उसके ही चक्र से मारा था । अर्धचक्री होकर यह मरा और रत्नप्रभा नरक में पैदा हुआ । वहाँ से निकलकर यह मेघवल्लभ नगर में मेघनाद नाम का राजपुत्र हुआ ।
महापुराण 62-412-414,430, 31.443, 461-473, 483-484, 512, 63.25, पांडवपुराण 4.248, 5.2-6
(4) जयकुमार तथा उसकी महादेवी शिर्वकरा का पुत्र । महापुराण 47.276-278, हरिवंशपुराण 12.48, पांडवपुराण 3. 274-275
(5) विनीता नगरी का राजा । यह सूर्यवंशशिखामणि, चक्रवर्ती सनत्कुमार का पिता था । महापुराण 61.104-105,70.147
(6) एक महामुनि । तीसरे पूर्वभव में तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के जीव चंपापुर के राजा हरिवर्मा को इन्होंने तत्त्वगोपदेश दिया था । इसी प्रकार चक्रवर्ती हरिषेण ने भी इनसे मोक्ष का स्वरूप सुनकर संयम धारण किया था । महापुराण 67.3-11, 66-68
विजयार्ध पर्वत की अलकापुरी नगरी के राजा पुरबल और उसकी रानी ज्योतिर्माला का पुत्र हरिबल इनसे द्रव्य-संयम धारण करके सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ था । महापुराण 71.311-312
श्रीधर्म इनके सहगामी चारण ऋद्धिधारी मुनि थे । शतबली अपने भाई हरिवाहन द्वारा निर्वासित किये जाने पर इनसे ही दीक्षित हुआ तथा मरकर ऐशान स्वर्ग में देव हुआ था । हरिवंशपुराण 60.18-21,
दशानन ने भी इन्हीं से बलपूर्वक किसी भी स्त्री को ग्रहण न करने का नियम लिया था । पद्मपुराण 39. 217-218
जब ये छप्पन हजार आकाशगामी मुनियों के साथ लंका के कुसुमायुध नाम के उद्यान में आये तब इनको केवलज्ञान इसी उद्यान में हुआ था । पद्मपुराण 79.58-61
इनका दूसरा नाम अनंतबल था । पद्मपुराण 14.370-371
(7) इस नाम का एक विद्वान् । यह जिनेंद्र के अभिषेक से स्वर्ग में सम्मानित हुआ था । पद्मपुराण 32.169
(8) मथुरा नगर का राजा । इसकी रानी मेरुमालिनी से मेरु नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ था । महापुराण 59.302
(9) सिद्ध (परमेष्ठी) के आठ गुणों में एक गुण― वीर्यांतराय कर्म के क्षय से उत्पन्न अप्रतिहत सामर्थ्य । इस गुण की प्राप्ति के लिए ‘‘अनंतवीर्याय नमः’’ इस पीठिका-मंत्र का जप किया जाता है । महापुराण 20.222-223, 40.14, 42.44, 99 देखें सिद्ध