मगध: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 16: | Line 16: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र की पूर्व दिशा में विद्यमान एक देश । राजगृह इसी देश का एक नगर है । कर्मभूमि के आरंभ में वृषभदेव की इच्छा से इस देश की रचना स्वयं इंद्र ने की थी । केवलज्ञान होने पर तीर्थंकर वृषभदेव और नेमिनाथ ने यहाँ विहार किया था । यहाँ का भू-भाग ईख, मूंग, मोठ, धान्य आदि धान्यों से संपन्न रहा है । यहाँ सभी वर्णों के लोग धर्म, अर्थ और काम इस त्रिवर्ग के साधक थे । यहाँ चैत्यालय थे । भरतेश ने इस पर विजय की थी । | <div class="HindiText"> <p> जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र की पूर्व दिशा में विद्यमान एक देश । राजगृह इसी देश का एक नगर है । कर्मभूमि के आरंभ में वृषभदेव की इच्छा से इस देश की रचना स्वयं इंद्र ने की थी । केवलज्ञान होने पर तीर्थंकर वृषभदेव और नेमिनाथ ने यहाँ विहार किया था । यहाँ का भू-भाग ईख, मूंग, मोठ, धान्य आदि धान्यों से संपन्न रहा है । यहाँ सभी वर्णों के लोग धर्म, अर्थ और काम इस त्रिवर्ग के साधक थे । यहाँ चैत्यालय थे । भरतेश ने इस पर विजय की थी । | ||
<span class="GRef"> महापुराण 2.4-7, 16.153, 25. 287-288, 29.47, 57.70 </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 109-35-36, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11.68-69, 43.99, 59.110, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 1. 101-102 </span>मगधराज― राजा श्रेणिक । <span class="GRef"> पद्मपुराण 2. 143 </span></p> | <span class="GRef"> महापुराण 2.4-7, 16.153, 25. 287-288, 29.47, 57.70 </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 109-35-36, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11.68-69, 43.99, 59.110, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 1. 101-102 </span>मगधराज― राजा श्रेणिक । <span class="GRef"> पद्मपुराण 2. 143 </span></p> | ||
</div> | </div> |
Revision as of 15:51, 26 October 2022
सिद्धांतकोष से
भरतक्षेत्र पूर्व आर्यखंड का एक देश–देखें मनुष्य - 4.4।
बिहार प्रांत में गंगा के दक्षिण का भाग। राजधानी पाटलीपुत्र (पटना)। गया और उरुविल्व (बुद्ध गया) इसी प्रांत में हैं।
( महापुराण/ प्र.49/पं. पन्नालाल)।
पुराणकोष से
जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र की पूर्व दिशा में विद्यमान एक देश । राजगृह इसी देश का एक नगर है । कर्मभूमि के आरंभ में वृषभदेव की इच्छा से इस देश की रचना स्वयं इंद्र ने की थी । केवलज्ञान होने पर तीर्थंकर वृषभदेव और नेमिनाथ ने यहाँ विहार किया था । यहाँ का भू-भाग ईख, मूंग, मोठ, धान्य आदि धान्यों से संपन्न रहा है । यहाँ सभी वर्णों के लोग धर्म, अर्थ और काम इस त्रिवर्ग के साधक थे । यहाँ चैत्यालय थे । भरतेश ने इस पर विजय की थी । महापुराण 2.4-7, 16.153, 25. 287-288, 29.47, 57.70 पद्मपुराण 109-35-36, हरिवंशपुराण 11.68-69, 43.99, 59.110, पांडवपुराण 1. 101-102 मगधराज― राजा श्रेणिक । पद्मपुराण 2. 143