मणिभद्र: Difference between revisions
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<li> <p class="HindiText">विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर–देखें [[ विद्याधर ]]। </li> | <li> <p class="HindiText">विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर–देखें [[ विद्याधर ]]। </li> | ||
<li> <p class="HindiText">यक्ष जाति के व्यंतर देवों का एक भेद–देखें [[ यक्ष ]]। </li> | <li> <p class="HindiText">यक्ष जाति के व्यंतर देवों का एक भेद–देखें [[ यक्ष ]]। </li> | ||
<li> <p class="HindiText"> | <li> <p class="HindiText"><span class="GRef">( पद्मपुराण/71/ </span>श्लो.)–यक्ष जाति का एक देव।69। जिसने बहुरूपिणीविद्या सिद्ध करते हुए रावण की रक्षा की थी।85।</li> | ||
<li> <p class="HindiText"> | <li> <p class="HindiText"><span class="GRef">( हरिवंशपुराण/43/ </span>श्लो.)–अयोध्या नगरी में समुद्रदत्त सेठ का पुत्र था।149। अणुव्रत लेकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ।158। यह कृष्ण के पुत्र शंब का पूर्व का चौथा भव है–देखें [[ शंब ]]।</li> | ||
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<p id="2">(2) ऐरावत क्षेत्र के मध्य स्थित विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में चौथा कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.110 </span></p> | <p id="2">(2) ऐरावत क्षेत्र के मध्य स्थित विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में चौथा कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.110 </span></p> | ||
<p id="3">(3) अयोध्या नगरी के सेठ समुद्रदत्त और उसकी पत्नी धारिणी का कनिष्ठ पुत्र तथा पूर्णभद्र का अनुज । ये दोनों भाई चिरकाल तक श्रावक के उत्तम व्रतों का पाल करके अंत में सल्लेखनापूर्वक मरे और सौधर्म स्वर्ग में उत्तम देव हुए । वहाँ से चयकर ये मधु और कैटभ हुए । <span class="GRef"> महापुराण 72. 21-26, 36-37, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.158-159, 43. 148-149 </span></p> | <p id="3">(3) अयोध्या नगरी के सेठ समुद्रदत्त और उसकी पत्नी धारिणी का कनिष्ठ पुत्र तथा पूर्णभद्र का अनुज । ये दोनों भाई चिरकाल तक श्रावक के उत्तम व्रतों का पाल करके अंत में सल्लेखनापूर्वक मरे और सौधर्म स्वर्ग में उत्तम देव हुए । वहाँ से चयकर ये मधु और कैटभ हुए । <span class="GRef"> महापुराण 72. 21-26, 36-37, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.158-159, 43. 148-149 </span></p> | ||
<p id="4">(4) वैश्रवण का पक्षधर एक योद्धा । <span class="GRef"> पद्मपुराण 8.195 </span></p> | <p id="4">(4) वैश्रवण का पक्षधर एक योद्धा । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_8#195|पद्मपुराण -8. 195]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) रावण का पक्षधर का एक यक्ष । इसने अपने साथी यक्षेंद्र पूर्णभद्र के साथ रहकर ध्यानस्थ रावण पर उपसर्ग करने वाले वानरकुमारों का सामना किया था और रावण की रक्षा की थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 70. 68-78 </span></p> | <p id="5">(5) रावण का पक्षधर का एक यक्ष । इसने अपने साथी यक्षेंद्र पूर्णभद्र के साथ रहकर ध्यानस्थ रावण पर उपसर्ग करने वाले वानरकुमारों का सामना किया था और रावण की रक्षा की थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 70. 68-78 </span></p> | ||
<p id="6">(6) व्यंतर देवों का एक इंद्र । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.59-63 </span></p> | <p id="6">(6) व्यंतर देवों का एक इंद्र । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.59-63 </span></p> |
Revision as of 22:27, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
सुमेरु पर्वत का नंदनवन में स्थित एक मुख्य कूट व उसका रक्षक देव। अपर नाम बलभद्र कूट था–देखें लोक - 3.6-4।
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विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर–देखें विद्याधर ।
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यक्ष जाति के व्यंतर देवों का एक भेद–देखें यक्ष ।
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( पद्मपुराण/71/ श्लो.)–यक्ष जाति का एक देव।69। जिसने बहुरूपिणीविद्या सिद्ध करते हुए रावण की रक्षा की थी।85।
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( हरिवंशपुराण/43/ श्लो.)–अयोध्या नगरी में समुद्रदत्त सेठ का पुत्र था।149। अणुव्रत लेकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ।158। यह कृष्ण के पुत्र शंब का पूर्व का चौथा भव है–देखें शंब ।
पुराणकोष से
(1) जंबूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र में विजयार्ध के नौ कूटों में छठा कूट । हरिवंशपुराण 5.27
(2) ऐरावत क्षेत्र के मध्य स्थित विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में चौथा कूट । हरिवंशपुराण 5.110
(3) अयोध्या नगरी के सेठ समुद्रदत्त और उसकी पत्नी धारिणी का कनिष्ठ पुत्र तथा पूर्णभद्र का अनुज । ये दोनों भाई चिरकाल तक श्रावक के उत्तम व्रतों का पाल करके अंत में सल्लेखनापूर्वक मरे और सौधर्म स्वर्ग में उत्तम देव हुए । वहाँ से चयकर ये मधु और कैटभ हुए । महापुराण 72. 21-26, 36-37, हरिवंशपुराण 5.158-159, 43. 148-149
(4) वैश्रवण का पक्षधर एक योद्धा । पद्मपुराण -8. 195
(5) रावण का पक्षधर का एक यक्ष । इसने अपने साथी यक्षेंद्र पूर्णभद्र के साथ रहकर ध्यानस्थ रावण पर उपसर्ग करने वाले वानरकुमारों का सामना किया था और रावण की रक्षा की थी । हरिवंशपुराण 70. 68-78
(6) व्यंतर देवों का एक इंद्र । वीरवर्द्धमान चरित्र 14.59-63
(7) एक यक्ष । इसने विंध्याचल पर्वत के शिवमंदिर के हार खोलने के उपलक्ष्य में पांडव भीम को शत्रु का क्षय करने वाली एक गदा दी थी । पांडवपुराण 14.203-206