अमृतस्रावी ऋद्धि: Difference between revisions
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<p> | <p> class="SanskritText"> [[तिलोयपण्णत्ति]] अधिकार संख्या ४/१०८४-१०८५ मुणिपाणिसंठियाणिं रुक्खाहारादियाणि जीय खणे। पावंति अमियभावं एसा अमियासवी ऋद्धी ।१०८४। अहवा दुक्खादीणं महेसिवयणस्स सवणकालम्मि। णासंति जीए सिग्घं रिद्धी अमियआसवी णामा ।१०८५। </p> | ||
<p class="HindiText">= जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि के हाथ में स्थित रूखे आहारादिक क्षणमात्र में अमृतपने को प्राप्त करते हैं, वह अमृतास्रवी नामक ऋद्धि है ।१०८४। अथवा जिस ऋद्धि से महर्षि के वचनों के श्रवण काल में शीघ्र ही दुःखादि नष्ट हो जाते हैं, वह अमृतस्रावी नामक ऋद्धि है ।१०८५। </p> | |||
[[तिलोयपण्णत्ति]] अधिकार संख्या ४/१०८४-१०८५ मुणिपाणिसंठियाणिं रुक्खाहारादियाणि जीय खणे। पावंति अमियभावं एसा अमियासवी ऋद्धी ।१०८४। अहवा दुक्खादीणं महेसिवयणस्स सवणकालम्मि। णासंति जीए सिग्घं रिद्धी अमियआसवी णामा ।१०८५। | |||
= जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि के हाथ में स्थित रूखे आहारादिक क्षणमात्र में अमृतपने को प्राप्त करते हैं, वह अमृतास्रवी नामक ऋद्धि है ।१०८४। अथवा जिस ऋद्धि से महर्षि के वचनों के श्रवण काल में शीघ्र ही दुःखादि नष्ट हो जाते हैं, वह अमृतस्रावी नामक ऋद्धि है ।१०८५। </p> | |||
Revision as of 05:58, 29 October 2022
class="SanskritText"> तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०८४-१०८५ मुणिपाणिसंठियाणिं रुक्खाहारादियाणि जीय खणे। पावंति अमियभावं एसा अमियासवी ऋद्धी ।१०८४। अहवा दुक्खादीणं महेसिवयणस्स सवणकालम्मि। णासंति जीए सिग्घं रिद्धी अमियआसवी णामा ।१०८५।
= जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि के हाथ में स्थित रूखे आहारादिक क्षणमात्र में अमृतपने को प्राप्त करते हैं, वह अमृतास्रवी नामक ऋद्धि है ।१०८४। अथवा जिस ऋद्धि से महर्षि के वचनों के श्रवण काल में शीघ्र ही दुःखादि नष्ट हो जाते हैं, वह अमृतस्रावी नामक ऋद्धि है ।१०८५।