शुचि: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="HindiText"> | <span class="HindiText"><span class="GRef"> राजवार्तिक/9/7/6/602/4 </span><br/><span class="SanskritText"> शुचित्वं द्विविधम् - लौकिकं लोकोत्तरं चेति। तत्रात्मन: प्रक्षालितकर्ममलकलंकस्य स्वात्मन्यवस्थानं लोकोत्तरं शुचित्वम्, तत्साधनं च सम्यग्दर्शनादि तद्वंतश्च साधव: तदधिष्ठानानि च निर्वाणभूम्यादोनि तत्प्राप्त्युपायत्वाच्छुचिव्यपदेशमर्हंति। लौकिकं शुचित्वमष्टविधम्-कालाग्निभस्ममृत्तिकागोमयसलिलज्ञाननिर्विचिकित्सत्वभेदात्।</span> = <span class="HindiText"> लौकिक और लोकोत्तर के भेद से शुचित्व दो प्रकार का है। कर्ममल-कलंकों को धोकर आत्मा का आत्मा में ही अवस्थान लोकोत्तर शुचित्व है। इसके साधन सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रयधारी साधुजन तथा उनसे अधिष्ठित निर्वाणभूमि आदि मोक्ष प्राप्ति के उपाय होने से शुचि हैं। काल, अग्नि, भस्म, मृत्तिका, गोबर, पानी, ज्ञान और निर्विचिकित्सा-ग्लानिरहितपना, इस प्रकार लौकिक-लोक प्रसिद्ध शुचित्व आठ प्रकार का है। <span class="GRef"> (चारित्रसार/190/6) </span></span></p><br/> | ||
<p><span class="GRef"> राजवार्तिक/6/12/10/523/4 </span><br/><span class="SanskritText">लोभप्रकाराणामुपरम: शौचम् ।</span> = <span class="HindiText">लोभ के प्रकारों से निवृत्ति शौच है।<br/> <br/>2. पिशाच जातीय व्यंतर देवों का एक भेद -देखें [[ पिशाच ]]।</span></p> | <p><span class="GRef"> राजवार्तिक/6/12/10/523/4 </span><br/><span class="SanskritText">लोभप्रकाराणामुपरम: शौचम् ।</span> = <span class="HindiText">लोभ के प्रकारों से निवृत्ति शौच है।<br/> <br/>2. पिशाच जातीय व्यंतर देवों का एक भेद -देखें [[ पिशाच ]]।</span></p> | ||
Revision as of 07:14, 29 October 2022
राजवार्तिक/9/7/6/602/4
शुचित्वं द्विविधम् - लौकिकं लोकोत्तरं चेति। तत्रात्मन: प्रक्षालितकर्ममलकलंकस्य स्वात्मन्यवस्थानं लोकोत्तरं शुचित्वम्, तत्साधनं च सम्यग्दर्शनादि तद्वंतश्च साधव: तदधिष्ठानानि च निर्वाणभूम्यादोनि तत्प्राप्त्युपायत्वाच्छुचिव्यपदेशमर्हंति। लौकिकं शुचित्वमष्टविधम्-कालाग्निभस्ममृत्तिकागोमयसलिलज्ञाननिर्विचिकित्सत्वभेदात्। = लौकिक और लोकोत्तर के भेद से शुचित्व दो प्रकार का है। कर्ममल-कलंकों को धोकर आत्मा का आत्मा में ही अवस्थान लोकोत्तर शुचित्व है। इसके साधन सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रयधारी साधुजन तथा उनसे अधिष्ठित निर्वाणभूमि आदि मोक्ष प्राप्ति के उपाय होने से शुचि हैं। काल, अग्नि, भस्म, मृत्तिका, गोबर, पानी, ज्ञान और निर्विचिकित्सा-ग्लानिरहितपना, इस प्रकार लौकिक-लोक प्रसिद्ध शुचित्व आठ प्रकार का है। (चारित्रसार/190/6)
शुचित्वं द्विविधम् - लौकिकं लोकोत्तरं चेति। तत्रात्मन: प्रक्षालितकर्ममलकलंकस्य स्वात्मन्यवस्थानं लोकोत्तरं शुचित्वम्, तत्साधनं च सम्यग्दर्शनादि तद्वंतश्च साधव: तदधिष्ठानानि च निर्वाणभूम्यादोनि तत्प्राप्त्युपायत्वाच्छुचिव्यपदेशमर्हंति। लौकिकं शुचित्वमष्टविधम्-कालाग्निभस्ममृत्तिकागोमयसलिलज्ञाननिर्विचिकित्सत्वभेदात्। = लौकिक और लोकोत्तर के भेद से शुचित्व दो प्रकार का है। कर्ममल-कलंकों को धोकर आत्मा का आत्मा में ही अवस्थान लोकोत्तर शुचित्व है। इसके साधन सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रयधारी साधुजन तथा उनसे अधिष्ठित निर्वाणभूमि आदि मोक्ष प्राप्ति के उपाय होने से शुचि हैं। काल, अग्नि, भस्म, मृत्तिका, गोबर, पानी, ज्ञान और निर्विचिकित्सा-ग्लानिरहितपना, इस प्रकार लौकिक-लोक प्रसिद्ध शुचित्व आठ प्रकार का है। (चारित्रसार/190/6)
राजवार्तिक/6/12/10/523/4
लोभप्रकाराणामुपरम: शौचम् । = लोभ के प्रकारों से निवृत्ति शौच है।
2. पिशाच जातीय व्यंतर देवों का एक भेद -देखें पिशाच ।