भेद: Difference between revisions
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<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/26/298/4 </span><span class="SanskritText">संघातानां द्वितयनिमित्तवशाद्विदारणं भेद:।</span> = <span class="HindiText">अंतरंग और बहिरंग इन दोनों प्रकार के निमित्तों से संघातों के विदारण करने को भेद कहते हैं। | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/26/298/4 </span><span class="SanskritText">संघातानां द्वितयनिमित्तवशाद्विदारणं भेद:।</span> = <span class="HindiText">अंतरंग और बहिरंग इन दोनों प्रकार के निमित्तों से संघातों के विदारण करने को भेद कहते हैं। <span class="GRef">( राजवार्तिक/5/26/1/493/23 )</span>। </span><br /> | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/5/24/1/485/14 </span><span class="SanskritText">भिनत्ति, भिद्यते, भेदमात्रं वा भेद:।</span> = <span class="HindiText">जो भेदन करता है, जिसके द्वारा भेदन किया जाता है, या भेदनमात्र को भेद कहते हैं।</span><br /> | <span class="GRef"> राजवार्तिक/5/24/1/485/14 </span><span class="SanskritText">भिनत्ति, भिद्यते, भेदमात्रं वा भेद:।</span> = <span class="HindiText">जो भेदन करता है, जिसके द्वारा भेदन किया जाता है, या भेदनमात्र को भेद कहते हैं।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 14/5,6,98/121/3 </span><span class="PrakritText">खंधाणं विहडणं भेदो णाम। </span>=<span class="HindiText">स्कंधों का विभाग होना भेद है।<br /> | <span class="GRef"> धवला 14/5,6,98/121/3 </span><span class="PrakritText">खंधाणं विहडणं भेदो णाम। </span>=<span class="HindiText">स्कंधों का विभाग होना भेद है।<br /> | ||
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<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/24/296/4 </span><span class="SanskritText">भेदाः षोढा, उत्करचूर्णखंडचूर्णिकाप्रतराणुचटनविकल्पात्।</span> =<span class="HindiText">भेद के छह भेद हैं–उत्कर, चूर्ण, खंड, चूर्णिका, प्रतर और अणुचटन।</span><br><span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह टीका/16/53/9 </span><span class="SanskritText">गोधूमादिचूर्णरूपेण घृतखंडादिरूपेण बहुधा भेदो ज्ञातव्य:।</span> <span class="HindiText">पुद्गल, गेहूँ आदि के चूनरूप से तथा घी, खांड आदि रूप से अनेक प्रकार का भेद जानना चाहिए।</span></li> | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/24/296/4 </span><span class="SanskritText">भेदाः षोढा, उत्करचूर्णखंडचूर्णिकाप्रतराणुचटनविकल्पात्।</span> =<span class="HindiText">भेद के छह भेद हैं–उत्कर, चूर्ण, खंड, चूर्णिका, प्रतर और अणुचटन।</span><br><span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह टीका/16/53/9 </span><span class="SanskritText">गोधूमादिचूर्णरूपेण घृतखंडादिरूपेण बहुधा भेदो ज्ञातव्य:।</span> <span class="HindiText">पुद्गल, गेहूँ आदि के चूनरूप से तथा घी, खांड आदि रूप से अनेक प्रकार का भेद जानना चाहिए।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText" name="3" id="3"><strong> उत्कर, चूर्ण आदि के लक्षण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText" name="3" id="3"><strong> उत्कर, चूर्ण आदि के लक्षण</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/24/296/4 </span><span class="SanskritText">तत्रोत्कर: काष्ठादीनां करपत्रादिभिरुत्करणम्। चूर्णो यवगोधूमादीनां सक्तुकणिकादि:। खंडोघटादीनां कपालशर्करादिः। चूर्णिका माषमुद्गादीनाम्। प्रतरोऽभ्रपटलादीनाम्। अणुचटनं संतप्ताय:पिंडादिषु अयोघनादिभिरभिहन्यमानेषु स्फुलिंगनिर्गमः।</span> =<span class="HindiText">करोंत आदि से जो लकड़ी आदि को चीरा जाताहै वह <strong>उत्कर</strong> नाम का भेद है। जौ और गेहूँ आदि का जो सत्तु और कनक आदि बनती है वह <strong>चूर्ण</strong> नाम का भेद है। घट आदि के जो कपाल और शर्करा आदि टुकड़े होते हैं वह <strong>खंड</strong> का नाम का भेद है। उड़द और मूँग आदि का जो खंड किया जाता है वह <strong>चूर्णिका</strong> नाम का भेद है। मेघ के जो अलग-अलग पटल आदि होते हैं वह <strong>प्रतर</strong> नाम का भेद है। तपाये हुए लोहे के गोले आदि को घन आदि से पीटने पर जो फुलंगे निकलते हैं वह <strong>अणुचटन</strong> नाम का भेद है। | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/24/296/4 </span><span class="SanskritText">तत्रोत्कर: काष्ठादीनां करपत्रादिभिरुत्करणम्। चूर्णो यवगोधूमादीनां सक्तुकणिकादि:। खंडोघटादीनां कपालशर्करादिः। चूर्णिका माषमुद्गादीनाम्। प्रतरोऽभ्रपटलादीनाम्। अणुचटनं संतप्ताय:पिंडादिषु अयोघनादिभिरभिहन्यमानेषु स्फुलिंगनिर्गमः।</span> =<span class="HindiText">करोंत आदि से जो लकड़ी आदि को चीरा जाताहै वह <strong>उत्कर</strong> नाम का भेद है। जौ और गेहूँ आदि का जो सत्तु और कनक आदि बनती है वह <strong>चूर्ण</strong> नाम का भेद है। घट आदि के जो कपाल और शर्करा आदि टुकड़े होते हैं वह <strong>खंड</strong> का नाम का भेद है। उड़द और मूँग आदि का जो खंड किया जाता है वह <strong>चूर्णिका</strong> नाम का भेद है। मेघ के जो अलग-अलग पटल आदि होते हैं वह <strong>प्रतर</strong> नाम का भेद है। तपाये हुए लोहे के गोले आदि को घन आदि से पीटने पर जो फुलंगे निकलते हैं वह <strong>अणुचटन</strong> नाम का भेद है। <span class="GRef">( राजवार्तिक/5/24/14/489/5 )</span>। </span></li> | ||
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Revision as of 22:27, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- भेद
- विदारण के अर्थ में
सर्वार्थसिद्धि/5/26/298/4 संघातानां द्वितयनिमित्तवशाद्विदारणं भेद:। = अंतरंग और बहिरंग इन दोनों प्रकार के निमित्तों से संघातों के विदारण करने को भेद कहते हैं। ( राजवार्तिक/5/26/1/493/23 )।
राजवार्तिक/5/24/1/485/14 भिनत्ति, भिद्यते, भेदमात्रं वा भेद:। = जो भेदन करता है, जिसके द्वारा भेदन किया जाता है, या भेदनमात्र को भेद कहते हैं।
धवला 14/5,6,98/121/3 खंधाणं विहडणं भेदो णाम। =स्कंधों का विभाग होना भेद है।
देखें पर्याय - 1.1 अंश, पर्याय, भाग, हार,विध, प्रकार, भेद, छेद और भंग ये एकार्थवाची हैं। - वस्तु के विशेष के अर्थ में
आलापपद्धति/6 गुणगुण्यादिसंज्ञाभेदाद् भेदस्वभाव:। = गुण और गुणी में संज्ञा भेद होने से भेद स्वभाव है।
नयचक्र बृहद्/62 भिण्णा हु वयणभेदेण हु वे भिण्णा अभेदादो। = द्रव्य, गुण, पर्याय में वचनभेद से तो भेद है परंतु द्रव्यरूप से अभेदरूप है।
स्याद्वादमंजरी/5/24/20 अयमेव हि भेदो भेदहेतुर्वा यद्विरुद्धधर्माध्यासः कारणभेदश्चेति। = विरुद्ध धर्मों का रहना और भिन्न-भिन्न कारणों का होना यही भेद है और भेद का कारण है।
- विदारण के अर्थ में
- भेद के भेद
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका/2 को नाम भेद:। प्रादेशिक अताद्भाविको वा। =भेद दो प्रकार है–अताद्भाविक, व प्रादेशिक।
सर्वार्थसिद्धि/5/24/296/4 भेदाः षोढा, उत्करचूर्णखंडचूर्णिकाप्रतराणुचटनविकल्पात्। =भेद के छह भेद हैं–उत्कर, चूर्ण, खंड, चूर्णिका, प्रतर और अणुचटन।
द्रव्यसंग्रह टीका/16/53/9 गोधूमादिचूर्णरूपेण घृतखंडादिरूपेण बहुधा भेदो ज्ञातव्य:। पुद्गल, गेहूँ आदि के चूनरूप से तथा घी, खांड आदि रूप से अनेक प्रकार का भेद जानना चाहिए। - उत्कर, चूर्ण आदि के लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/5/24/296/4 तत्रोत्कर: काष्ठादीनां करपत्रादिभिरुत्करणम्। चूर्णो यवगोधूमादीनां सक्तुकणिकादि:। खंडोघटादीनां कपालशर्करादिः। चूर्णिका माषमुद्गादीनाम्। प्रतरोऽभ्रपटलादीनाम्। अणुचटनं संतप्ताय:पिंडादिषु अयोघनादिभिरभिहन्यमानेषु स्फुलिंगनिर्गमः। =करोंत आदि से जो लकड़ी आदि को चीरा जाताहै वह उत्कर नाम का भेद है। जौ और गेहूँ आदि का जो सत्तु और कनक आदि बनती है वह चूर्ण नाम का भेद है। घट आदि के जो कपाल और शर्करा आदि टुकड़े होते हैं वह खंड का नाम का भेद है। उड़द और मूँग आदि का जो खंड किया जाता है वह चूर्णिका नाम का भेद है। मेघ के जो अलग-अलग पटल आदि होते हैं वह प्रतर नाम का भेद है। तपाये हुए लोहे के गोले आदि को घन आदि से पीटने पर जो फुलंगे निकलते हैं वह अणुचटन नाम का भेद है। ( राजवार्तिक/5/24/14/489/5 )।
- *अन्य संबंधी नियम
- द्रव्य में कथंचित् भेदाभेद।–देखें द्रव्य - 4.2।
- द्रव्य में अनेक अपेक्षाओं से भेदाभेद।–देखें सप्तभंगी - 5।
- उत्पाद व्यय ध्रौव्य में भेदाभेद।–देखें उत्पाद - IV.2.6.3,6/2।
- भेद सापेक्ष वा भेद निरपेक्ष द्रव्यार्थिक नय–देखें नय - II.7
- भिन्न द्रव्य में परस्पर भिन्नता–देखें कारक - 2।
- पर के साथ एकत्व कहने का तात्पर्य।–देखें कारक - 2/5।
पुराणकोष से
राजाओं की प्रयोजन सिद्धि (राजनीति) के साम, दाम, भेद और दंड इन चार उपायों में तीसरा उपाय शत्रु पक्ष में फूट डालकर कार्यसिद्धि करना भेद कहलाता है । महापुराण 68.62, 64, हरिवंशपुराण 50.18