अंगारिणी: Difference between revisions
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<p> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण/22/51-73 </span>का भावार्थ–भगवान् ऋषभदेव से नमि और विनमि द्वारा राज्य की याचना करने पर धरणेंद्र ने अनेक देवों के संग आकर उन दोनों को अपनी देवियों से कुछ विद्याएँ दिलाकर संतुष्ट किया। तहाँ अदिति देवी ने विद्याओं के आठ निकाय तथा गंधर्वसेनक नामक विद्याकोष दिया। आठ विद्या निकायों के नाम–मनु, मानव, कौशिक, गौरिक, गांधार, भूमितुंड, मूलवीर्यक, शंकुक। ये निकाय आर्य, आदित्य, गंधर्व तथा व्योमचर भी कहलाते हैं। दिति देवी ने–मालंक, पांडु, काल, स्वपाक, पर्वत, वंशालय, पांशुमूल, वृक्षमूल ये आठ विद्यानिकाय दिये। दैत्य, पन्नग, मातंग इनके अपर नाम हैं। इन सोलह निकायों में निम्न विद्याएँ हैं–प्रज्ञप्ति, रोहिणी, '''अंगारिणी,''' महागौरी, गौरी, सर्वविद्या, प्रकर्षिणी, महाश्वेता, मायूरी, हारी, निर्वज्ञशाङ्वला, तिरस्कारिणी, छायासंक्रामिणी, कुष्मांड-गणमाता, सर्वविद्याविराजिता, आर्यकूष्मांड देवी, अच्युता, आर्यवती, गांधारी, निर्वृत्ति, दंडाध्यक्षगण, दंडभूतसहस्रक, भद्रकाली, महाकाली, काली, कालमुखी, इनके अतिरिक्त–एकपर्वा, द्विपर्वा, त्रिपर्वा, दशपर्वा, शतपर्वा, सहस्रपर्वा, लक्षपर्वा, उत्पातिनी, त्रिपातिनी, धारिणी, अंतविचारिणी, जलगति और अग्निगति समस्त निकायों में नाना प्रकार की शक्तियों से सहित नाना पर्वतों पर निवास करने वाली एवं नाना औषधियों की जानकार हैं। सर्वार्थसिद्धा, सिद्धार्था, जयंती, मंगला, जया, प्रहारसंक्रामिणी, अशय्याराधिनी, विशल्याकारिणी, व्रणसंरोहिणी, सवर्णकारिणी, मृतसंजीवनी, ये सब विद्याएँ कल्याणरूप तथा मंत्रों से परिष्कृत, विद्याबल से युक्त तथा लोगों का हित करने वाली हैं। (<span class="GRef"> महापुराण/7/34-334 </span>)। <br /> | <p> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण/22/51-73 </span><div class="HindiText">का भावार्थ–भगवान् ऋषभदेव से नमि और विनमि द्वारा राज्य की याचना करने पर धरणेंद्र ने अनेक देवों के संग आकर उन दोनों को अपनी देवियों से कुछ विद्याएँ दिलाकर संतुष्ट किया। तहाँ अदिति देवी ने विद्याओं के आठ निकाय तथा गंधर्वसेनक नामक विद्याकोष दिया। आठ विद्या निकायों के नाम–मनु, मानव, कौशिक, गौरिक, गांधार, भूमितुंड, मूलवीर्यक, शंकुक। ये निकाय आर्य, आदित्य, गंधर्व तथा व्योमचर भी कहलाते हैं। दिति देवी ने–मालंक, पांडु, काल, स्वपाक, पर्वत, वंशालय, पांशुमूल, वृक्षमूल ये आठ विद्यानिकाय दिये। दैत्य, पन्नग, मातंग इनके अपर नाम हैं। इन सोलह निकायों में निम्न विद्याएँ हैं–प्रज्ञप्ति, रोहिणी, '''अंगारिणी,''' महागौरी, गौरी, सर्वविद्या, प्रकर्षिणी, महाश्वेता, मायूरी, हारी, निर्वज्ञशाङ्वला, तिरस्कारिणी, छायासंक्रामिणी, कुष्मांड-गणमाता, सर्वविद्याविराजिता, आर्यकूष्मांड देवी, अच्युता, आर्यवती, गांधारी, निर्वृत्ति, दंडाध्यक्षगण, दंडभूतसहस्रक, भद्रकाली, महाकाली, काली, कालमुखी, इनके अतिरिक्त–एकपर्वा, द्विपर्वा, त्रिपर्वा, दशपर्वा, शतपर्वा, सहस्रपर्वा, लक्षपर्वा, उत्पातिनी, त्रिपातिनी, धारिणी, अंतविचारिणी, जलगति और अग्निगति समस्त निकायों में नाना प्रकार की शक्तियों से सहित नाना पर्वतों पर निवास करने वाली एवं नाना औषधियों की जानकार हैं। सर्वार्थसिद्धा, सिद्धार्था, जयंती, मंगला, जया, प्रहारसंक्रामिणी, अशय्याराधिनी, विशल्याकारिणी, व्रणसंरोहिणी, सवर्णकारिणी, मृतसंजीवनी, ये सब विद्याएँ कल्याणरूप तथा मंत्रों से परिष्कृत, विद्याबल से युक्त तथा लोगों का हित करने वाली हैं। (<span class="GRef"> महापुराण/7/34-334 </span>)। <br /> | ||
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Revision as of 23:06, 5 December 2022
सिद्धांतकोष से
एक विद्या - देखें विद्या ।
हरिवंशपुराण/22/51-73
का भावार्थ–भगवान् ऋषभदेव से नमि और विनमि द्वारा राज्य की याचना करने पर धरणेंद्र ने अनेक देवों के संग आकर उन दोनों को अपनी देवियों से कुछ विद्याएँ दिलाकर संतुष्ट किया। तहाँ अदिति देवी ने विद्याओं के आठ निकाय तथा गंधर्वसेनक नामक विद्याकोष दिया। आठ विद्या निकायों के नाम–मनु, मानव, कौशिक, गौरिक, गांधार, भूमितुंड, मूलवीर्यक, शंकुक। ये निकाय आर्य, आदित्य, गंधर्व तथा व्योमचर भी कहलाते हैं। दिति देवी ने–मालंक, पांडु, काल, स्वपाक, पर्वत, वंशालय, पांशुमूल, वृक्षमूल ये आठ विद्यानिकाय दिये। दैत्य, पन्नग, मातंग इनके अपर नाम हैं। इन सोलह निकायों में निम्न विद्याएँ हैं–प्रज्ञप्ति, रोहिणी, अंगारिणी, महागौरी, गौरी, सर्वविद्या, प्रकर्षिणी, महाश्वेता, मायूरी, हारी, निर्वज्ञशाङ्वला, तिरस्कारिणी, छायासंक्रामिणी, कुष्मांड-गणमाता, सर्वविद्याविराजिता, आर्यकूष्मांड देवी, अच्युता, आर्यवती, गांधारी, निर्वृत्ति, दंडाध्यक्षगण, दंडभूतसहस्रक, भद्रकाली, महाकाली, काली, कालमुखी, इनके अतिरिक्त–एकपर्वा, द्विपर्वा, त्रिपर्वा, दशपर्वा, शतपर्वा, सहस्रपर्वा, लक्षपर्वा, उत्पातिनी, त्रिपातिनी, धारिणी, अंतविचारिणी, जलगति और अग्निगति समस्त निकायों में नाना प्रकार की शक्तियों से सहित नाना पर्वतों पर निवास करने वाली एवं नाना औषधियों की जानकार हैं। सर्वार्थसिद्धा, सिद्धार्था, जयंती, मंगला, जया, प्रहारसंक्रामिणी, अशय्याराधिनी, विशल्याकारिणी, व्रणसंरोहिणी, सवर्णकारिणी, मृतसंजीवनी, ये सब विद्याएँ कल्याणरूप तथा मंत्रों से परिष्कृत, विद्याबल से युक्त तथा लोगों का हित करने वाली हैं। ( महापुराण/7/34-334 )।
पुराणकोष से
दिति और अदिति द्वारा नमि ओर बिनमि को प्रदत्त विद्याओं के सोलह निकायों की एक विद्या । हरिवंशपुराण 22.61-62