अर्द्ध पुद्गल परावर्तन: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText"> पाँच प्रकार के परावर्तनों/परिवर्तनों में प्रथम परावर्तन द्रव्य परावर्तन है, जिसका अपरनाम पुद्गल परावर्तन है। उससे आधे या कम काल को अर्ध पुद्गल परावर्तन कहते हैं। यह काल सक्षय होने पर भी छद्मस्थों के द्वारा नहीं जाना जा सकने से अनन्त कहा जाता है। सम्यग्दृष्टि जीव इस काल के अंदर-अंदर मोक्ष चला जाता है। </p> | <p class="HindiText"> पाँच प्रकार के परावर्तनों/परिवर्तनों में प्रथम परावर्तन द्रव्य परावर्तन है, जिसका अपरनाम पुद्गल परावर्तन है। उससे आधे या कम काल को अर्ध पुद्गल परावर्तन कहते हैं। यह काल सक्षय होने पर भी छद्मस्थों के द्वारा नहीं जाना जा सकने से अनन्त कहा जाता है। सम्यग्दृष्टि जीव इस काल के अंदर-अंदर मोक्ष चला जाता है। </p> | ||
< | <span class="HindiText"> अधिक जानकारी के लिए देखें [[ अनंत ]], [[ संसार ]] और [[ सम्यग्दर्शन#III.1 | सम्यग्दर्शन - III.1.4]]।</span> | ||
Revision as of 08:13, 8 November 2022
पाँच प्रकार के परावर्तनों/परिवर्तनों में प्रथम परावर्तन द्रव्य परावर्तन है, जिसका अपरनाम पुद्गल परावर्तन है। उससे आधे या कम काल को अर्ध पुद्गल परावर्तन कहते हैं। यह काल सक्षय होने पर भी छद्मस्थों के द्वारा नहीं जाना जा सकने से अनन्त कहा जाता है। सम्यग्दृष्टि जीव इस काल के अंदर-अंदर मोक्ष चला जाता है।
अधिक जानकारी के लिए देखें अनंत , संसार और सम्यग्दर्शन - III.1.4।