अकषाय वेदनीय: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText">चारित्रमोह के दो भेद हैं−कषायवेदनीय और अकषाय वेदनीय। क्रोधादि चार कषाय हैं और हास्यादि 9 अकषाय हैं। <br> | <p class="HindiText">चारित्रमोह के दो भेद हैं−कषायवेदनीय और अकषाय वेदनीय। क्रोधादि चार कषाय हैं और हास्यादि 9 अकषाय हैं। </p><br> | ||
- देखें [[ मोहनीय#1 | मोहनीय - 1]]।</p> | |||
<li><span class="HindiText"><strong name="3.6" id="3.6"> अकषायवेदनीय के बंधयोग्य परिणाम</strong> </span><br /> | |||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/6/14/3/525/8 </span><span class="SanskritText">उत्प्रहासादीनाभिहासित्व-कंदर्पोपहसन-बहुग्रलापोपहासशीलता हास्यवेदनीयस्य। विचित्रपरक्रीडनपरसौ-चित्यावर्जन-बहुविधपीडाभाव-देशाद्यनौत्सुक्यप्रीतिसंजननादिः रति-वेदनीयस्य। परारतिप्रादुर्भावनरतिविनाशनपापशीलसंसर्गताकुशल-क्रियाप्रोत्साहनादिः अरतिवेदनीयस्य। स्वशोकामोदशोचन-परदुःखाविष्करण-शोकप्लुताभिनंदनादिः शोकवेदनीयस्य। स्वयंभयपरिणाम-परभयोत्पादन-निर्दयत्व-त्रासनादिर्भयवेदनीयस्य। सद्धर्मापन्नचतुर्वर्णविशिष्टवर्गकुलक्रियाचारप्रवणजुगुप्सा-परिवाद-शीलत्वादिर्जुगुप्सावेदनीयस्य। प्रकृष्टक्रोधपरिणामातिमानितेर्ष्याव्यापारालीकाभिधायिता-तिसंधानपरत्व-प्रवृद्धराग-परांगनागमनादर-वामलोचनाभावाभिष्-वंगतादिः स्त्रीवेदस्य। स्तोकक्रोधजैह्य-निवृत्त्यनुत्सिक्तत्वा-लोभभावरंगनासमवायाल्परागत्व-स्वदार-संतोषेर्ष्याविशेषोपरमस्नानगंध-माल्याभरणानादरादिः पुंवेदनीयस्य। प्रचुरक्रोधमानमायालोभपरिणाम-गुह्येंद्रियव्यपरोपणस्त्रीपुंसानंगव्यसनित्व शीलव्रतगुणधारिप्रव्रज्या-श्रितप्रम(मै)थुन-परांग-नावस्कंदनरागतीव्रानाचारादिर्नपुंसकवेदनीयस्य।</span> = <span class="HindiText">उत्प्रहास, दीनतापूर्वक हँसी, कामविकार पूर्वक हँसी, बहु-प्रलाप तथा हर एक की हँसी मजाक करना <strong>हास्यवेदनीय</strong> के आस्रव के कारण हैं। विचित्र क्रीड़ा, दूसरे के चित्त को आकर्षण करना, बहुपीड़ा, देशादि के प्रति अनुत्सुकता, प्रीति उत्पन्न करना <strong>रतिवेदनीय</strong> के आस्रव के कारण हैं। रतिविनाश, पापशील व्यक्तियों की संगति, अकुशल क्रिया को प्रोत्साहन देना आदि <strong>अरतिवेदनीय</strong> के आस्रव के कारण हैं। स्वशोक, प्रीति के लिए पर का शोक करना, दूसरों को दुःख उत्पन्न करना, शोक से व्याप्त का अभिनंदन आदि <strong>शोकवेदनीय</strong> के आस्रव के कारण हैं। स्वयं भयभीत रहना, दूसरों को भय उत्पन्न करना, निर्दयता, त्रास, आदि<strong> भयवेदनीय</strong> के आस्रव के कारण हैं। धर्मात्मा चतुर्वर्ण विशिष्ट वर्ग कुल आदि की क्रिया और आचार में तत्पर पुरुषों से ग्लानि करना, दूसरे की बदनामी करने का स्वभाव आदि <strong>जुगुप्सावेदनीय</strong> के आस्रव के कारण हैं। अत्यंत क्रोध के परिणाम, अतिमान, अत्यंत ईर्ष्या, मिथ्याभाषण, छल कपट, तीव्रराग, परांगनागमन, स्त्रीभावों में रुचि आदि <strong>स्त्रीवेद</strong> के आस्रव के कारण हैं। मंदक्रोध, कुटिलता न होना, अभिमान न होना, निर्लोभ भाव, अल्पराग, स्वदारसंतोष, ईर्ष्या-रहित भाव, स्नान, गंध, माला, आभरण आदि के प्रति आदर न होना आदि <strong>पुंवेद</strong> के आस्रव के कारण हैं। प्रचुर क्रोध मान माया लोभ, गुप्त इंद्रियों का विनाश, स्त्री पुरुषों में अनंगक्रीड़ा का व्यसन, शीलव्रत गुणधारी और दीक्षाधारी पुरुषों को बिचकाना, परस्त्री पर आक्रमण, तीव्र राग, अनाचार आदि <strong>नपुंसकवेद</strong> के आस्रव के कारण हैं। (<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/6/24/332/9 </span>)। </span></li> | |||
<p class="HindiText">- देखें [[ मोहनीय#1 | मोहनीय - 1]]।</p> | |||
Revision as of 01:53, 6 November 2022
चारित्रमोह के दो भेद हैं−कषायवेदनीय और अकषाय वेदनीय। क्रोधादि चार कषाय हैं और हास्यादि 9 अकषाय हैं।
राजवार्तिक/6/14/3/525/8 उत्प्रहासादीनाभिहासित्व-कंदर्पोपहसन-बहुग्रलापोपहासशीलता हास्यवेदनीयस्य। विचित्रपरक्रीडनपरसौ-चित्यावर्जन-बहुविधपीडाभाव-देशाद्यनौत्सुक्यप्रीतिसंजननादिः रति-वेदनीयस्य। परारतिप्रादुर्भावनरतिविनाशनपापशीलसंसर्गताकुशल-क्रियाप्रोत्साहनादिः अरतिवेदनीयस्य। स्वशोकामोदशोचन-परदुःखाविष्करण-शोकप्लुताभिनंदनादिः शोकवेदनीयस्य। स्वयंभयपरिणाम-परभयोत्पादन-निर्दयत्व-त्रासनादिर्भयवेदनीयस्य। सद्धर्मापन्नचतुर्वर्णविशिष्टवर्गकुलक्रियाचारप्रवणजुगुप्सा-परिवाद-शीलत्वादिर्जुगुप्सावेदनीयस्य। प्रकृष्टक्रोधपरिणामातिमानितेर्ष्याव्यापारालीकाभिधायिता-तिसंधानपरत्व-प्रवृद्धराग-परांगनागमनादर-वामलोचनाभावाभिष्-वंगतादिः स्त्रीवेदस्य। स्तोकक्रोधजैह्य-निवृत्त्यनुत्सिक्तत्वा-लोभभावरंगनासमवायाल्परागत्व-स्वदार-संतोषेर्ष्याविशेषोपरमस्नानगंध-माल्याभरणानादरादिः पुंवेदनीयस्य। प्रचुरक्रोधमानमायालोभपरिणाम-गुह्येंद्रियव्यपरोपणस्त्रीपुंसानंगव्यसनित्व शीलव्रतगुणधारिप्रव्रज्या-श्रितप्रम(मै)थुन-परांग-नावस्कंदनरागतीव्रानाचारादिर्नपुंसकवेदनीयस्य। = उत्प्रहास, दीनतापूर्वक हँसी, कामविकार पूर्वक हँसी, बहु-प्रलाप तथा हर एक की हँसी मजाक करना हास्यवेदनीय के आस्रव के कारण हैं। विचित्र क्रीड़ा, दूसरे के चित्त को आकर्षण करना, बहुपीड़ा, देशादि के प्रति अनुत्सुकता, प्रीति उत्पन्न करना रतिवेदनीय के आस्रव के कारण हैं। रतिविनाश, पापशील व्यक्तियों की संगति, अकुशल क्रिया को प्रोत्साहन देना आदि अरतिवेदनीय के आस्रव के कारण हैं। स्वशोक, प्रीति के लिए पर का शोक करना, दूसरों को दुःख उत्पन्न करना, शोक से व्याप्त का अभिनंदन आदि शोकवेदनीय के आस्रव के कारण हैं। स्वयं भयभीत रहना, दूसरों को भय उत्पन्न करना, निर्दयता, त्रास, आदि भयवेदनीय के आस्रव के कारण हैं। धर्मात्मा चतुर्वर्ण विशिष्ट वर्ग कुल आदि की क्रिया और आचार में तत्पर पुरुषों से ग्लानि करना, दूसरे की बदनामी करने का स्वभाव आदि जुगुप्सावेदनीय के आस्रव के कारण हैं। अत्यंत क्रोध के परिणाम, अतिमान, अत्यंत ईर्ष्या, मिथ्याभाषण, छल कपट, तीव्रराग, परांगनागमन, स्त्रीभावों में रुचि आदि स्त्रीवेद के आस्रव के कारण हैं। मंदक्रोध, कुटिलता न होना, अभिमान न होना, निर्लोभ भाव, अल्पराग, स्वदारसंतोष, ईर्ष्या-रहित भाव, स्नान, गंध, माला, आभरण आदि के प्रति आदर न होना आदि पुंवेद के आस्रव के कारण हैं। प्रचुर क्रोध मान माया लोभ, गुप्त इंद्रियों का विनाश, स्त्री पुरुषों में अनंगक्रीड़ा का व्यसन, शीलव्रत गुणधारी और दीक्षाधारी पुरुषों को बिचकाना, परस्त्री पर आक्रमण, तीव्र राग, अनाचार आदि नपुंसकवेद के आस्रव के कारण हैं। ( सर्वार्थसिद्धि/6/24/332/9 )।
- देखें मोहनीय - 1।