अयोग केवली: Difference between revisions
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<p> | <p><span class="GRef"> पंचसंग्रह/प्राकृत/1/100</span><span class="PrakritGatha"> जेसिं ण संति जोगा सुहासुहा पुण्णपापसंजणया। ते होंति अजोइजिणा अणोवमाणंतगुणकलिया।100।</span>=<span class="HindiText">जिनके पुण्य और पाप के संजनक अर्थात् उत्पन्न करने वाले शुभ और अशुभ योग नहीं होते हैं, वे '''अयोगि जिन''' कहलाते हैं, जो कि अनुपम और अनंत गुणों से सहित होते हैं। ( <span class="GRef">धवला 1/1,1,59/155/280</span> ) ( <span class="GRef">गोम्मटसार जीवकांड/243 </span>) </p> | ||
<span class="HindiText"> अन्य परिभाषाओं और अधिक जानकारी के लिए देखें [[ केवली#1 | केवली - 1]]।</span> | <span class="HindiText"> अन्य परिभाषाओं और अधिक जानकारी के लिए देखें [[ केवली#1 | केवली - 1]]।</span> | ||
Revision as of 10:13, 27 December 2022
पंचसंग्रह/प्राकृत/1/100 जेसिं ण संति जोगा सुहासुहा पुण्णपापसंजणया। ते होंति अजोइजिणा अणोवमाणंतगुणकलिया।100।=जिनके पुण्य और पाप के संजनक अर्थात् उत्पन्न करने वाले शुभ और अशुभ योग नहीं होते हैं, वे अयोगि जिन कहलाते हैं, जो कि अनुपम और अनंत गुणों से सहित होते हैं। ( धवला 1/1,1,59/155/280 ) ( गोम्मटसार जीवकांड/243 )
अन्य परिभाषाओं और अधिक जानकारी के लिए देखें केवली - 1।