परिग्रहानंद: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> रौद्रध्यान के चार भेदों में चौथा भेद । बाह्य और आभ्यंतर दोनों प्रकार के परिग्रहों की रक्षा में आनंद मानना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56.19,25-26 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> रौद्रध्यान के चार भेदों में चौथा भेद । बाह्य और आभ्यंतर दोनों प्रकार के परिग्रहों की रक्षा में आनंद मानना । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_56#19|हरिवंशपुराण - 56.19]],25-26 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
रौद्रध्यान के चार भेदों में चौथा भेद । बाह्य और आभ्यंतर दोनों प्रकार के परिग्रहों की रक्षा में आनंद मानना । हरिवंशपुराण - 56.19,25-26