लिंग शुद्धि: Difference between revisions
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<p><span class=" | <p><span class="GRef">मूलाचार/गाथा सं. </span><span class="SanskritText">चलचवलचवलजीविदमिणं णाऊण माणुसत्तणमसारं। णिव्विण्णकामभोगा धम्मम्मि उवट्ठिदमदीया।773। णिम्मालियसुमिणावियधणकणयसमिद्धबंधवजणं च। पयहंति वीरपुरिसा विरत्तकामा गिहावासे।774। उच्छाहणिच्छिदमदी ववसिदववसायबद्धकच्छा य। भावाणुरायरत्ता जिणपण्णत्तम्मि धम्मम्मि।777। </span> </p> | ||
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लिंग शुद्धि</strong>-अस्थिर नाश सहित इस जीवन को और परमार्थ रहित इस मनुष्य जन्म को जानकर स्त्री आदि उपभोग तथा भोजन आदि भोगों से अभिलाषा रहित हुए, निर्ग्रंथादि स्वरूप चारित्र में दृढ़ बुद्धिवाले, घर के रहने से विरक्त चित्त वाले ऐसे वीर पुरुष भोग में आये फूलों की तरह गाय, घोड़ा आदि-धन-सोना इनसे परिपूर्ण ऐसे बांधव जनों को छोड़ देते हैं।773-774। तप में तल्लीन होने में जिनकी बुद्धि निश्चित है जिन्होंने पुरुषार्थ किया है, कर्म के निर्मूल करने में जिन्होंने कमर कसी है, और जिनदेव कथित धर्म में परमार्थभूत भक्ति उसके प्रेमी हैं, ऐसे मुनियों के लिंगशुद्धि होती है।777। <br/> | |||
अधिक जानकारी के लिए देखें [[ शुद्धि#5 | शुद्धि - 5]]। | |||
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[[ लिंग व्यभिचार | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ लिंग व्यभिचार | पूर्व पृष्ठ ]] |
Latest revision as of 15:05, 15 November 2022
मूलाचार/गाथा सं. चलचवलचवलजीविदमिणं णाऊण माणुसत्तणमसारं। णिव्विण्णकामभोगा धम्मम्मि उवट्ठिदमदीया।773। णिम्मालियसुमिणावियधणकणयसमिद्धबंधवजणं च। पयहंति वीरपुरिसा विरत्तकामा गिहावासे।774। उच्छाहणिच्छिदमदी ववसिदववसायबद्धकच्छा य। भावाणुरायरत्ता जिणपण्णत्तम्मि धम्मम्मि।777।
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लिंग शुद्धि-अस्थिर नाश सहित इस जीवन को और परमार्थ रहित इस मनुष्य जन्म को जानकर स्त्री आदि उपभोग तथा भोजन आदि भोगों से अभिलाषा रहित हुए, निर्ग्रंथादि स्वरूप चारित्र में दृढ़ बुद्धिवाले, घर के रहने से विरक्त चित्त वाले ऐसे वीर पुरुष भोग में आये फूलों की तरह गाय, घोड़ा आदि-धन-सोना इनसे परिपूर्ण ऐसे बांधव जनों को छोड़ देते हैं।773-774। तप में तल्लीन होने में जिनकी बुद्धि निश्चित है जिन्होंने पुरुषार्थ किया है, कर्म के निर्मूल करने में जिन्होंने कमर कसी है, और जिनदेव कथित धर्म में परमार्थभूत भक्ति उसके प्रेमी हैं, ऐसे मुनियों के लिंगशुद्धि होती है।777।
अधिक जानकारी के लिए देखें शुद्धि - 5।