वर्ग: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1">वर्ग </strong></span><br><span class="GRef"> राजवार्तिक/2/5/4/107/6 </span><span class="SanskritText">उदयप्राप्तस्य कर्मणः प्रदेशा अभव्यानामनंतगुणाः सिद्धानामनंत-भगप्रमाणाः । तत्र सर्वजघन्यगुणः प्रदेशः परिगृहीतः, तस्यानुभागः प्रज्ञाछेदेन तावद्वा परिच्छिन्नः यावत्पुनर्विभागो न भवति । ते अविभागपरिच्छेदाः सर्वजीवानामनंतगुणाः, एको राशिः कृतः ।... अपर एकाविभागपरिच्छेदाधिक; प्रदेशः परिगृहीतः, तथेव तस्याविभाग-परिच्छेदाः कृताः । स एको राशिर्वर्गः । </span>= <span class="HindiText">उदय प्राप्त कर्म के प्रदेश अभव्यों के अनंत गुणे तथा सिद्धों के अनंतवें भाग प्रमाण होते हैं । उनमें से सर्व जघन्य गुण वाले प्रदेश के अनुभाग का बुद्धि के द्वारा उतना सूक्ष्म विभाग किया जाये जिससे आगे विभाजन न हो सकता हो । ये अविभाग प्रतिच्छेद सर्व जीवराशि के अनंत गुण प्रमाण होते हैं । एक के पीछे एक स्थापित करके इनकी एक राशि बनानी चाहिए । सर्व जघन्य गुण वाले प्रदेश के अविभाग प्रतिच्छेदों की इस राशि को वर्ग कहते हैं । इसी प्रकार दूसरे-तीसरे आदि सर्व जघन्य गुण वाले प्रदेशों के पृथक्-पृथक् वर्ग बनाने चाहिए । पुनः एक अविभाग प्रतिच्छेद अधिक गुण वालों के सर्व जीवराशि के अनंतगुण प्रमाण राशिरूप वर्ग बनाने चाहिए । (समान गुण वाले सर्व प्रदेशों की वर्ग राशि को वर्गणा कहते हैं (देखें [[ वर्गणा ]])) | <li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1">वर्ग </strong></span><br><span class="GRef"> राजवार्तिक/2/5/4/107/6 </span><span class="SanskritText">उदयप्राप्तस्य कर्मणः प्रदेशा अभव्यानामनंतगुणाः सिद्धानामनंत-भगप्रमाणाः । तत्र सर्वजघन्यगुणः प्रदेशः परिगृहीतः, तस्यानुभागः प्रज्ञाछेदेन तावद्वा परिच्छिन्नः यावत्पुनर्विभागो न भवति । ते अविभागपरिच्छेदाः सर्वजीवानामनंतगुणाः, एको राशिः कृतः ।... अपर एकाविभागपरिच्छेदाधिक; प्रदेशः परिगृहीतः, तथेव तस्याविभाग-परिच्छेदाः कृताः । स एको राशिर्वर्गः । </span>= <span class="HindiText">उदय प्राप्त कर्म के प्रदेश अभव्यों के अनंत गुणे तथा सिद्धों के अनंतवें भाग प्रमाण होते हैं । उनमें से सर्व जघन्य गुण वाले प्रदेश के अनुभाग का बुद्धि के द्वारा उतना सूक्ष्म विभाग किया जाये जिससे आगे विभाजन न हो सकता हो । ये अविभाग प्रतिच्छेद सर्व जीवराशि के अनंत गुण प्रमाण होते हैं । एक के पीछे एक स्थापित करके इनकी एक राशि बनानी चाहिए । सर्व जघन्य गुण वाले प्रदेश के अविभाग प्रतिच्छेदों की इस राशि को वर्ग कहते हैं । इसी प्रकार दूसरे-तीसरे आदि सर्व जघन्य गुण वाले प्रदेशों के पृथक्-पृथक् वर्ग बनाने चाहिए । पुनः एक अविभाग प्रतिच्छेद अधिक गुण वालों के सर्व जीवराशि के अनंतगुण प्रमाण राशिरूप वर्ग बनाने चाहिए । (समान गुण वाले सर्व प्रदेशों की वर्ग राशि को वर्गणा कहते हैं (देखें [[ वर्गणा ]])) <span class="GRef">( कषायपाहुड़ 5/4-22/573//344/1 )</span>; <span class="GRef">( धवला 12/4, 2, 7, 199/92/8 )</span> । </span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 10/4, 2, 4, 178/441/9 </span><span class="PrakritText">एगजीवपदेसाविभागपरिच्छेदाणं वग्गववएसादो । </span>= <span class="HindiText">एक जीव प्रदेश के अविभाग प्रतिच्छेदों वर्ग यह संज्ञा है । </span><br /> | <span class="GRef"> धवला 10/4, 2, 4, 178/441/9 </span><span class="PrakritText">एगजीवपदेसाविभागपरिच्छेदाणं वग्गववएसादो । </span>= <span class="HindiText">एक जीव प्रदेश के अविभाग प्रतिच्छेदों वर्ग यह संज्ञा है । </span><br /> | ||
<span class="GRef"> समयसार / आत्मख्याति 52 </span><span class="SanskritText"> शक्तिसमूहलक्षणो वर्गः ।</span> =<span class="HindiText"> शक्तियों का अर्थात् अविभागप्रतिच्छेदों का समूह वर्ग है । | <span class="GRef"> समयसार / आत्मख्याति 52 </span><span class="SanskritText"> शक्तिसमूहलक्षणो वर्गः ।</span> =<span class="HindiText"> शक्तियों का अर्थात् अविभागप्रतिच्छेदों का समूह वर्ग है । <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड/मं प्र./59/153/14</span> । <br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> जघन्य वर्ग का लक्षण </strong><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> जघन्य वर्ग का लक्षण </strong><br /> |
Revision as of 22:35, 17 November 2023
- वर्ग
राजवार्तिक/2/5/4/107/6 उदयप्राप्तस्य कर्मणः प्रदेशा अभव्यानामनंतगुणाः सिद्धानामनंत-भगप्रमाणाः । तत्र सर्वजघन्यगुणः प्रदेशः परिगृहीतः, तस्यानुभागः प्रज्ञाछेदेन तावद्वा परिच्छिन्नः यावत्पुनर्विभागो न भवति । ते अविभागपरिच्छेदाः सर्वजीवानामनंतगुणाः, एको राशिः कृतः ।... अपर एकाविभागपरिच्छेदाधिक; प्रदेशः परिगृहीतः, तथेव तस्याविभाग-परिच्छेदाः कृताः । स एको राशिर्वर्गः । = उदय प्राप्त कर्म के प्रदेश अभव्यों के अनंत गुणे तथा सिद्धों के अनंतवें भाग प्रमाण होते हैं । उनमें से सर्व जघन्य गुण वाले प्रदेश के अनुभाग का बुद्धि के द्वारा उतना सूक्ष्म विभाग किया जाये जिससे आगे विभाजन न हो सकता हो । ये अविभाग प्रतिच्छेद सर्व जीवराशि के अनंत गुण प्रमाण होते हैं । एक के पीछे एक स्थापित करके इनकी एक राशि बनानी चाहिए । सर्व जघन्य गुण वाले प्रदेश के अविभाग प्रतिच्छेदों की इस राशि को वर्ग कहते हैं । इसी प्रकार दूसरे-तीसरे आदि सर्व जघन्य गुण वाले प्रदेशों के पृथक्-पृथक् वर्ग बनाने चाहिए । पुनः एक अविभाग प्रतिच्छेद अधिक गुण वालों के सर्व जीवराशि के अनंतगुण प्रमाण राशिरूप वर्ग बनाने चाहिए । (समान गुण वाले सर्व प्रदेशों की वर्ग राशि को वर्गणा कहते हैं (देखें वर्गणा )) ( कषायपाहुड़ 5/4-22/573//344/1 ); ( धवला 12/4, 2, 7, 199/92/8 ) ।
धवला 10/4, 2, 4, 178/441/9 एगजीवपदेसाविभागपरिच्छेदाणं वग्गववएसादो । = एक जीव प्रदेश के अविभाग प्रतिच्छेदों वर्ग यह संज्ञा है ।
समयसार / आत्मख्याति 52 शक्तिसमूहलक्षणो वर्गः । = शक्तियों का अर्थात् अविभागप्रतिच्छेदों का समूह वर्ग है । ( गोम्मटसार जीवकांड/मं प्र./59/153/14 ।
- जघन्य वर्ग का लक्षण
लब्धिसार/भाषा/223/277/8 सवतैं थोरे जिस परमाणु विषै अनुभाग के अविभाग प्रतिच्छेद पाइए ताका नाम जघन्य वर्ग है ।
- गणित प्रकरण में वर्ग का लक्षण
किसी राशि को दो बार माँडकर परस्पर गुणा करने से ताका वर्ग होता है । अर्थात् Square । - (विशेष देखें गणित । II/1/7) ।
- द्विरूप वगधारा - देखें गणित - II.5.2 ।