बीजसम्यक्त्व: Difference between revisions
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</span>=<span class="HindiText">आज्ञा, मार्ग, उपदेश, सूत्र, '''बीज''', संक्षेप, विस्तार, अर्थ, अवगाढ और परमावगाढ '''रुचि के भेद से दर्शनार्य दश''' प्रकार हैं। (<span class="GRef"> आत्मानुशासन/11 </span>); (<span class="GRef"> अनगारधर्मामृत/2/62/185 </span>)</span></p> | </span>=<span class="HindiText">आज्ञा, मार्ग, उपदेश, सूत्र, '''बीज''', संक्षेप, विस्तार, अर्थ, अवगाढ और परमावगाढ '''रुचि के भेद से दर्शनार्य दश''' प्रकार हैं। (<span class="GRef"> आत्मानुशासन/11 </span>); (<span class="GRef"> अनगारधर्मामृत/2/62/185 </span>)</span></p> | ||
<li class="HindiText" id="I.1.2">आज्ञा आदि 10 भेदों के लक्षण</li> | <li class="HindiText" id="I.1.2">आज्ञा आदि 10 भेदों के लक्षण</li> | ||
अधिक जानकारी के लिए देखें - [[ सम्यग्दर्शन#I.1.1 | सम्यग्दर्शन I.1.1 ]]। | |||
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Revision as of 14:46, 18 November 2022
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/1/7/28/4 विधानं सामान्यादेकं सम्यग्दर्शनम् । द्वितयं निसर्गजाधिगमजभेदात् । राजवार्तिक )। =भेद की अपेक्षा सम्यग्दर्शन सामान्य से एक है। निसर्गज और अधिगमज के भेद से दो प्रकार का है ( तत्त्वार्थसूत्र/1/3 )।
राजवार्तिक/3/36/2/201/12 दर्शनार्या दशधा - आज्ञामार्गोपदेशसूत्रबीजसंक्षेपविस्तारार्थावगाढपरमावगाढरुचिभेदात् । =आज्ञा, मार्ग, उपदेश, सूत्र, बीज, संक्षेप, विस्तार, अर्थ, अवगाढ और परमावगाढ रुचि के भेद से दर्शनार्य दश प्रकार हैं। ( आत्मानुशासन/11 ); ( अनगारधर्मामृत/2/62/185 )
अधिक जानकारी के लिए देखें - सम्यग्दर्शन I.1.1 । पूर्व पृष्ठ अगला पृष्ठ
पुराणकोष से
सम्यग्दर्शन के दस भेदों में पाँचवाँ भेद, अपरनाम बीजसम्यक्त्व । इससे बीजपदों को ग्रहण करने और उनके सूक्ष्म अर्थ को सुनने से भव्यजीवों की तत्त्वार्थ में रुचि उत्पन्न होती है । महापुराण 74. 439-440, 444, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.147