शंब: Difference between revisions
From जैनकोष
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== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p class="HindiText"><span class="GRef"> हरिवंशपुराण/ </span> | <p class="HindiText"><span class="GRef"> (हरिवंशपुराण/सर्ग/श्लोक)</span>-पूर्व भव सं.7 में शृगाल (43/115) फिर वायुभूति ब्राह्मण (43/100); फिर सौधर्म स्वर्ग में देव (43/149) चौथे में मणिभद्र सेठ का पुत्र (43/149) फिर सौधर्म स्वर्ग में देव (43/158); फिर कैटभ नामक राजपुत्र (43/160) फिर पूर्व भव में अच्युतेंद्र (43/216) वर्तमान भव में जांबवती रानी से कृष्ण का पुत्र था (48/7) वन क्रीड़ा करते समय वन में पड़े कुंडों में से शराब पी ली (61/49) जिसके नशे में द्वीपायन मुनि पर उपसर्ग किया (61/49-55)। द्वारका भस्म होने की घटना को जान दीक्षा ग्रहण की। (61/68) अंत में गिरनार से मोक्ष प्राप्त किया (65/16-17)। | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> कृष्ण और उनकी पटरानी जांबवती का पुत्र । कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी ने अपने भाई रुक्मी से अपने पुत्र प्रद्युम्न के लिए उसकी पुत्री वैदर्भी की याचना की थी । रुक्मी ने पूर्व विरोध के कारण यह निवेदन स्वीकार नहीं किया था । इससे कुपित होकर इसने और प्रद्युम्न दोनों ने भील के वेष में रुक्मी को पराजित कर बलपूर्वक वैदर्भी का हरण किया था । इसके पश्चात् वैदर्भी का विवाह प्रद्युम्न से हुआ । इसने कदंब वन में मदिरा-पान कर तप में लीन मुनि द्वैपायन पर अनेक उपसर्ग किये थे । उपसर्ग के कारण उत्पन्न भूरि के कोप को द्वारिका के भस्म होने का कारण जानकर यह दीक्षित हो गया था । अंत में गिरनार पर्वत से इसका निर्वाण हुआ । यह सातवें पूर्वभव में शृंगाल था, छठे पूर्वभव में वायुभूति-ब्राह्मण, पाँचवें पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव, चौथे पूर्वभव में मणिभद्र सेठ का पुत्र, तीसरे पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव, दूसरे पूर्वभव में राजपुत्र कैटभ और प्रथम पूर्वभव में अच्युतेंद्र हुआ था । इसका अपर नाम शंभव था । <span class="GRef"> महापुराण 72. 174-175, 189-191, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43. 100, 115, 148-149, 158-160, 216-218, 48. 4-20, 61. 49-55, 68, 65. 16-17 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> कृष्ण और उनकी पटरानी जांबवती का पुत्र । कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी ने अपने भाई रुक्मी से अपने पुत्र प्रद्युम्न के लिए उसकी पुत्री वैदर्भी की याचना की थी । रुक्मी ने पूर्व विरोध के कारण यह निवेदन स्वीकार नहीं किया था । इससे कुपित होकर इसने और प्रद्युम्न दोनों ने भील के वेष में रुक्मी को पराजित कर बलपूर्वक वैदर्भी का हरण किया था । इसके पश्चात् वैदर्भी का विवाह प्रद्युम्न से हुआ । इसने कदंब वन में मदिरा-पान कर तप में लीन मुनि द्वैपायन पर अनेक उपसर्ग किये थे । उपसर्ग के कारण उत्पन्न भूरि के कोप को द्वारिका के भस्म होने का कारण जानकर यह दीक्षित हो गया था । अंत में गिरनार पर्वत से इसका निर्वाण हुआ । यह सातवें पूर्वभव में शृंगाल था, छठे पूर्वभव में वायुभूति-ब्राह्मण, पाँचवें पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव, चौथे पूर्वभव में मणिभद्र सेठ का पुत्र, तीसरे पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव, दूसरे पूर्वभव में राजपुत्र कैटभ और प्रथम पूर्वभव में अच्युतेंद्र हुआ था । इसका अपर नाम शंभव था । <span class="GRef"> (महापुराण 72. 174-175, 189-191), </span><span class="GRef"> (हरिवंशपुराण 43. 100, 115, 148-149, 158-160, 216-218, 48. 4-20, 61. 49-55, 68, 65. 16-17) </span></p> | ||
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Revision as of 14:14, 22 December 2022
सिद्धांतकोष से
(हरिवंशपुराण/सर्ग/श्लोक)-पूर्व भव सं.7 में शृगाल (43/115) फिर वायुभूति ब्राह्मण (43/100); फिर सौधर्म स्वर्ग में देव (43/149) चौथे में मणिभद्र सेठ का पुत्र (43/149) फिर सौधर्म स्वर्ग में देव (43/158); फिर कैटभ नामक राजपुत्र (43/160) फिर पूर्व भव में अच्युतेंद्र (43/216) वर्तमान भव में जांबवती रानी से कृष्ण का पुत्र था (48/7) वन क्रीड़ा करते समय वन में पड़े कुंडों में से शराब पी ली (61/49) जिसके नशे में द्वीपायन मुनि पर उपसर्ग किया (61/49-55)। द्वारका भस्म होने की घटना को जान दीक्षा ग्रहण की। (61/68) अंत में गिरनार से मोक्ष प्राप्त किया (65/16-17)।
पुराणकोष से
कृष्ण और उनकी पटरानी जांबवती का पुत्र । कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी ने अपने भाई रुक्मी से अपने पुत्र प्रद्युम्न के लिए उसकी पुत्री वैदर्भी की याचना की थी । रुक्मी ने पूर्व विरोध के कारण यह निवेदन स्वीकार नहीं किया था । इससे कुपित होकर इसने और प्रद्युम्न दोनों ने भील के वेष में रुक्मी को पराजित कर बलपूर्वक वैदर्भी का हरण किया था । इसके पश्चात् वैदर्भी का विवाह प्रद्युम्न से हुआ । इसने कदंब वन में मदिरा-पान कर तप में लीन मुनि द्वैपायन पर अनेक उपसर्ग किये थे । उपसर्ग के कारण उत्पन्न भूरि के कोप को द्वारिका के भस्म होने का कारण जानकर यह दीक्षित हो गया था । अंत में गिरनार पर्वत से इसका निर्वाण हुआ । यह सातवें पूर्वभव में शृंगाल था, छठे पूर्वभव में वायुभूति-ब्राह्मण, पाँचवें पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव, चौथे पूर्वभव में मणिभद्र सेठ का पुत्र, तीसरे पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में देव, दूसरे पूर्वभव में राजपुत्र कैटभ और प्रथम पूर्वभव में अच्युतेंद्र हुआ था । इसका अपर नाम शंभव था । (महापुराण 72. 174-175, 189-191), (हरिवंशपुराण 43. 100, 115, 148-149, 158-160, 216-218, 48. 4-20, 61. 49-55, 68, 65. 16-17)