अंतःकरण: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/14/109/3</span> <p class="SanskritText">अनिंद्रियं मन: अंतःकरणमित्यनर्थांतरम्।</p> | <p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/14/109/3</span> <p class="SanskritText">अनिंद्रियं मन: अंतःकरणमित्यनर्थांतरम्।</p> | ||
<p class="HindiText">= अनिंद्रिय, मन और अंत:करण ये एकार्थवाची नाम हैं। | <p class="HindiText">= अनिंद्रिय, मन और अंत:करण ये एकार्थवाची नाम हैं। <span class="GRef">( राजवार्तिक/1/14/2/59/19</span> ); <span class="GRef"> (न्यायदीपिका/भाष्य/1/1/9/16)</span>; <span class="GRef">( न्यायदीपिका/2/12/33/2</span> )।</p> | ||
<p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/14/109/8</span><p class="SanskritText"> तदंत:करणमिति चोच्यते। गुणदोषविचारस्मरणादिव्यापारे इंद्रियानपेक्षत्वाच्चक्षुरादिवत् वहिरनुपलब्धेश्च अंतर्गतं करणमंत:करणमित्युच्यते।</p> | <p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/14/109/8</span><p class="SanskritText"> तदंत:करणमिति चोच्यते। गुणदोषविचारस्मरणादिव्यापारे इंद्रियानपेक्षत्वाच्चक्षुरादिवत् वहिरनुपलब्धेश्च अंतर्गतं करणमंत:करणमित्युच्यते।</p> | ||
<p class="HindiText">= इसे गुण और दोषों के विचार और स्मरण करने आदि कार्यों में इंद्रियों की अपेक्षा नहीं लेनी पड़ती, तथा, चक्षु आदि इंद्रियों के समान इसकी बाहर में उपलब्धि भी नहीं होती, इसलिए यह अंतर्गत करण होने से अंत:करण कहलाता है। | <p class="HindiText">= इसे गुण और दोषों के विचार और स्मरण करने आदि कार्यों में इंद्रियों की अपेक्षा नहीं लेनी पड़ती, तथा, चक्षु आदि इंद्रियों के समान इसकी बाहर में उपलब्धि भी नहीं होती, इसलिए यह अंतर्गत करण होने से अंत:करण कहलाता है। <span class="GRef">( राजवार्तिक/1/14/3/59/26; 5/19/31/472/31</span> )</p> | ||
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Latest revision as of 22:14, 17 November 2023
सर्वार्थसिद्धि/1/14/109/3
अनिंद्रियं मन: अंतःकरणमित्यनर्थांतरम्।
= अनिंद्रिय, मन और अंत:करण ये एकार्थवाची नाम हैं। ( राजवार्तिक/1/14/2/59/19 ); (न्यायदीपिका/भाष्य/1/1/9/16); ( न्यायदीपिका/2/12/33/2 )।
सर्वार्थसिद्धि/1/14/109/8
तदंत:करणमिति चोच्यते। गुणदोषविचारस्मरणादिव्यापारे इंद्रियानपेक्षत्वाच्चक्षुरादिवत् वहिरनुपलब्धेश्च अंतर्गतं करणमंत:करणमित्युच्यते।
= इसे गुण और दोषों के विचार और स्मरण करने आदि कार्यों में इंद्रियों की अपेक्षा नहीं लेनी पड़ती, तथा, चक्षु आदि इंद्रियों के समान इसकी बाहर में उपलब्धि भी नहीं होती, इसलिए यह अंतर्गत करण होने से अंत:करण कहलाता है। ( राजवार्तिक/1/14/3/59/26; 5/19/31/472/31 )