अकालध्ययन: Difference between revisions
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Revision as of 12:16, 25 February 2023
- सम्यग्ज्ञान का एक दोष
- सम्यग्ज्ञान का कालनामा अंग
(मूलाचार/270-275) पादोसियवेरत्तियगोसग्गियकालमेव गेण्हित्ता। उभये कालम्हि पुणो सज्झाओ होदि कायव्वो।270। सज्झाये पट्ठवणे जंघच्छायं वियाण सत्तपयं। पव्वण्हे अवरण्हे तावदियं चेव णिट्ठवणे।271। आसाढे दुपदा छाया पुस्समासे चदुप्पदा। वड्ढदे हीयदे चावि मासे मासे दुअंगुला।272। णवसत्तपंचगाहापरिमाणं दिसिविभागसोधीए। पुव्वण्हे अवरण्हे पदोसकाले य सज्झाए।273। दिसहाह उक्कपडणं विज्जु चडुक्कासणिंदधणुगं च। दुग्गंधसज्झदुद्दिणचंदग्गहसूरराहुजुज्झं च।274। कलहादिधूमकेदू धरणीकंपं च अब्भगज्चं च। इच्चेवमाइबहुया सज्झाए वज्जिदा दोसा।275।=प्रादोषिककाल, वैरात्रिक, गोसर्गकाल—इन चारों कालों में से दिनरात के पूर्वकाल अपरकाल इन दो कालों में स्वाध्याय करनी चाहिए।270। स्वाध्याय के आरंभ करने में सूर्य के उदय होने पर दोनों जाँघों की छाया सात विलस्त छाया रहे तब स्वाध्याय समाप्त करना चाहिए।271। आषाढ महीने के अंत दिवस में पूर्वाह्ण के समय दो पहर पहले जंघा छाया दो विलस्त अर्थात् बारह अंगुल प्रमाण होती है और पौषमास में अंत के दिन में चौबीस अंगुल प्रमाण जंघाछाया होती है। और फिर महीने-महीने में दो-दो अंगुल बढ़ती घटती है। सब संध्याओं में आदि अंत की दो दो घड़ी छोड़ स्वाध्याय काल है।272। दिशाओं के पूर्व आदि भेदों की शुद्धि के लिए प्रात:काल में नौ गाथाओं का, तीसरे पहर सात गाथाओं का, सायंकाल के समय पाँच गाथाओं का स्वाध्याय (पाठ व जाप) करे।273। उत्पात से दिशा का चमकना, मेघों के संघट्ट से उत्पन्न वज्रपात, ओले बरसना, धनुष के आकार पंचवर्ण पुद्गलों का दिखना, दुर्गंध, लालपीलेवर्ण के आकार साँझ का समय, बादलों से आच्छादित दिन, चंद्रमा, ग्रह, सूर्य, राहु के विमानों का आपस में टकराना।274। लड़ाई के वचन, लकड़ी आदि से झगड़ना, आकाश में धुआँ रेखा का दीखना, धरतीकंप, बादलों का गर्जना, महापवन का चलना, अग्निदाह इत्यादि बहुत से दोष स्वाध्याय में वर्जित किये गये हैं अर्थात् ऐसे दोषों के होने पर नवीन पठन-पाठन नहीं करना चाहिए।275। ( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/113/260 )
- अधिक जानकारी के लिए देखें काल 1.10 ।