अनगारधर्म: Difference between revisions
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Revision as of 19:26, 15 December 2022
सिद्धांतकोष से
रयणसार गाथा 11... झाणाझयणं मुक्ख जइधम्मं ण तं विणा तहा सोवि ॥11॥
= ध्यान और अध्ययन करना मुनीश्वरों का मुख्य धर्म है। जो मुनिराज इन दोनों को अपना मुख्य कर्तव्य समझकर अहर्निश पालन करता है, वही मुनीश्वर है, मोक्ष मार्ग में संलग्न है। अन्यथा वह मुनीश्वर नहीं है।
पद्मनंदि पंचविंशतिका अधिकार 1/38
आचारो दशधर्मसंयमतपोमूलोत्तराख्या गुणाः मिथ्यामोहमदोज्झनं शमदमध्यानप्रमादस्थितिः। वैराग्यं समयोपबृंहणगुणा रत्नत्रयं निर्मलं पर्यंते च समाधिरक्षयपदानंदाय धर्मो यतेः ॥38॥
= ज्ञानाचारादि स्वरूप पाँच प्रकार का आचार, उत्तम क्षमादि रूप दश प्रकार का धर्म, संयम, तप तथा मूलगुण और उत्तरगुण, मिथ्यात्व, मोह एवं मद का त्याग, कषायों का शमन, इंद्रियों का दमन, ध्यान, प्रमाद रहित अवस्थान, संसार, शरीर एवं इंद्रिय विषयों से विरक्ति, धर्म को बढ़ाने वाले अनेकों गुण, निर्मल रत्नत्रय तथा अंत में समाधिमरण - यह सब मुनियों का धर्म है जो अविनश्वर मोक्षपद के आनंद का कारण है।
पुराणकोष से
मुनियों के धर्म । ये धर्म है― पाँच महाव्रत, पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियां । इन धर्मों के पालन से पूर्व सम्यग्दर्शन आवश्यक है । पद्मपुराण 4.48,6.293 ।
ऐसे मुनि मोह का नाश करते हैं और रत्नत्रय को प्राप्त करके स्वर्ग या मोक्ष पाते हैं, कुगतियों में नहीं जन्मते । पद्मपुराण 4.49-51, 292