शयनासन शुद्धि: Difference between revisions
From जैनकोष
mNo edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 2: | Line 2: | ||
<p> | <p> | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/9/6/16/596/1 </span><span class="SanskritText">अपहृतसंयमस्य प्रतिपादनार्थ: शुद्धयष्टकोपदेशो द्रष्टव्य:। तद्यथा, अष्टौ शुद्धय:-भावशुद्धि:, कायशुद्धि:, विनयशुद्धि:, ईर्यापथशुद्धि:, भिक्षाशुद्धि:, प्रतिष्ठापनशुद्धि:, शयनासनशुद्धि:, वाक्यशुद्धिश्चेति।</span> = | <span class="GRef"> राजवार्तिक/9/6/16/596/1 </span><span class="SanskritText">अपहृतसंयमस्य प्रतिपादनार्थ: शुद्धयष्टकोपदेशो द्रष्टव्य:। तद्यथा, अष्टौ शुद्धय:-भावशुद्धि:, कायशुद्धि:, विनयशुद्धि:, ईर्यापथशुद्धि:, भिक्षाशुद्धि:, प्रतिष्ठापनशुद्धि:, शयनासनशुद्धि:, वाक्यशुद्धिश्चेति।</span> = | ||
<span class="HindiText">इस अपहृत संयम के प्रतिपादन के लिए ही इन आठ शुद्धियों का उपदेश दिया गया है-भाव शुद्धि, कायशुद्धि, विनयशुद्धि, ईर्यापथ शुद्धि, भिक्षाशुद्धि, प्रतिष्ठापन शुद्धि, शयनासनशुद्धि और वाक्यशुद्धि। | <span class="HindiText">इस अपहृत संयम के प्रतिपादन के लिए ही इन आठ शुद्धियों का उपदेश दिया गया है-भाव शुद्धि, कायशुद्धि, विनयशुद्धि, ईर्यापथ शुद्धि, भिक्षाशुद्धि, प्रतिष्ठापन शुद्धि, शयनासनशुद्धि और वाक्यशुद्धि। <span class="GRef">( राजवार्तिक/8/1/30/564/29 )</span>; <span class="GRef">( चारित्रसार/76/1 )</span>; <span class="GRef">( अनगारधर्मामृत/6/49 )</span>।</span></p> | ||
<ul><li><span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिए देखें [[ शुद्धि ]]।</span></li></ul> | <ul><li><span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिए देखें [[ शुद्धि ]]।</span></li></ul> | ||
Revision as of 22:35, 17 November 2023
- संयम की आठ शुद्धियों में से एक शुद्धि|
राजवार्तिक/9/6/16/596/1 अपहृतसंयमस्य प्रतिपादनार्थ: शुद्धयष्टकोपदेशो द्रष्टव्य:। तद्यथा, अष्टौ शुद्धय:-भावशुद्धि:, कायशुद्धि:, विनयशुद्धि:, ईर्यापथशुद्धि:, भिक्षाशुद्धि:, प्रतिष्ठापनशुद्धि:, शयनासनशुद्धि:, वाक्यशुद्धिश्चेति। = इस अपहृत संयम के प्रतिपादन के लिए ही इन आठ शुद्धियों का उपदेश दिया गया है-भाव शुद्धि, कायशुद्धि, विनयशुद्धि, ईर्यापथ शुद्धि, भिक्षाशुद्धि, प्रतिष्ठापन शुद्धि, शयनासनशुद्धि और वाक्यशुद्धि। ( राजवार्तिक/8/1/30/564/29 ); ( चारित्रसार/76/1 ); ( अनगारधर्मामृत/6/49 )।
- अधिक जानकारी के लिए देखें शुद्धि ।