शत्रुंजय: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) भरतक्षेत्र का एक पर्वत । यहाँ पाँचों पांडवों ने आकर प्रतिमायोग से ध्यान लगाया था । दुर्योधन के भानजे कुर्यधर अपर नाम क्षुयवरोधन ने पांडवों को लोहे के तप्त वस्त्र और आभूषण इसी पर्वत पर पहनाये थे । उपसर्ग जीतकर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन इसी पर्वत से मुक्त हुए और नकुल तथा सहदेव सर्वार्थसिद्धि विमान में उत्पन्न हुए । यह पर्वत एक तीर्थ के रूप में मान्य हुआ । <span class="GRef"> (महापुराण 72.267-270), </span><span class="GRef"> (हरिवंशपुराण 65.18-20) </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) भरतक्षेत्र का एक पर्वत । यहाँ पाँचों पांडवों ने आकर प्रतिमायोग से ध्यान लगाया था । दुर्योधन के भानजे कुर्यधर अपर नाम क्षुयवरोधन ने पांडवों को लोहे के तप्त वस्त्र और आभूषण इसी पर्वत पर पहनाये थे । उपसर्ग जीतकर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन इसी पर्वत से मुक्त हुए और नकुल तथा सहदेव सर्वार्थसिद्धि विमान में उत्पन्न हुए । यह पर्वत एक तीर्थ के रूप में मान्य हुआ । <span class="GRef"> (महापुराण 72.267-270), </span><span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_65#18|हरिवंशपुराण - 65.18-20]]) </span></p> | ||
<p id="2">(2) राजा विनमि विद्याधर का पुत्र । <span class="GRef"> (हरिवंशपुराण 22. 104) </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) राजा विनमि विद्याधर का पुत्र । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#104|हरिवंशपुराण - 22.104]]) </span></p> | ||
<p id="3">(3) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का सातवाँ नगर । <span class="GRef"> (महापुराण 19.80, 87), </span><span class="GRef"> (हरिवंशपुराण 22. 86) </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का सातवाँ नगर । <span class="GRef"> (महापुराण 19.80, 87), </span><span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#86|हरिवंशपुराण - 22.86]]) </span></p> | ||
<p id="4">(4) राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी का तिरेपनवां पुत्र । <span class="GRef"> (पांडवपुराण 8.199) </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी का तिरेपनवां पुत्र । <span class="GRef"> (पांडवपुराण 8.199) </span></p> | ||
<p id="5">(5) एक राजा । यह रोहिणी के स्वयंवर में आया था । रोहिणी के लिए इसने वसुदेव के साथ युद्ध किया था । वसुदेव ने इसका रथ और कवच तोड़ डाला था और इसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ दिया था । <span class="GRef"> (हरिवंशपुराण 31. 27, 94-95, 50.131-132) </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) एक राजा । यह रोहिणी के स्वयंवर में आया था । रोहिणी के लिए इसने वसुदेव के साथ युद्ध किया था । वसुदेव ने इसका रथ और कवच तोड़ डाला था और इसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ दिया था । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_31#27|हरिवंशपुराण - 31.27]], 94-95, 50.131-132) </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पुराणकोष से
(1) भरतक्षेत्र का एक पर्वत । यहाँ पाँचों पांडवों ने आकर प्रतिमायोग से ध्यान लगाया था । दुर्योधन के भानजे कुर्यधर अपर नाम क्षुयवरोधन ने पांडवों को लोहे के तप्त वस्त्र और आभूषण इसी पर्वत पर पहनाये थे । उपसर्ग जीतकर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन इसी पर्वत से मुक्त हुए और नकुल तथा सहदेव सर्वार्थसिद्धि विमान में उत्पन्न हुए । यह पर्वत एक तीर्थ के रूप में मान्य हुआ । (महापुराण 72.267-270), (हरिवंशपुराण - 65.18-20)
(2) राजा विनमि विद्याधर का पुत्र । (हरिवंशपुराण - 22.104)
(3) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का सातवाँ नगर । (महापुराण 19.80, 87), (हरिवंशपुराण - 22.86)
(4) राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी का तिरेपनवां पुत्र । (पांडवपुराण 8.199)
(5) एक राजा । यह रोहिणी के स्वयंवर में आया था । रोहिणी के लिए इसने वसुदेव के साथ युद्ध किया था । वसुदेव ने इसका रथ और कवच तोड़ डाला था और इसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ दिया था । (हरिवंशपुराण - 31.27, 94-95, 50.131-132)