अप्रमत्तसंयत: Difference between revisions
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<p> <span class="GRef"> राजवार्तिक/9/1/18/590/6 </span><span class="SanskritText">पूर्ववत् संयममास्कंदं पूर्वोक्तप्रमादविरहात् अविचलितसंयमवृत्ति: अप्रमत्तसंयत: समाख्यायते। | <p> <span class="GRef"> राजवार्तिक/9/1/18/590/6 </span><span class="SanskritText">पूर्ववत् संयममास्कंदं पूर्वोक्तप्रमादविरहात् अविचलितसंयमवृत्ति: अप्रमत्तसंयत: समाख्यायते। | ||
</span>=<span class="HindiText">पूर्ववत् | </span>=<span class="HindiText">पूर्ववत् प्रमत्तसंयत संयम को प्राप्त करके, प्रमाद का अभाव होने से अविचलित संयमी '''अप्रमत्त संयत''' कहलाता है।</span></p> | ||
<p> <span class="GRef"> धवला 1/1,1,15/178/7 </span><span class="SanskritText">प्रमत्तसंयता: पूर्वोक्तलक्षणा:, न प्रमत्तसंयता अप्रमत्तसंयता: पंचदशप्रमादरहितसंयता इति यावत् । | <p> <span class="GRef"> धवला 1/1,1,15/178/7 </span><span class="SanskritText">प्रमत्तसंयता: पूर्वोक्तलक्षणा:, न प्रमत्तसंयता अप्रमत्तसंयता: पंचदशप्रमादरहितसंयता इति यावत् । | ||
</span>=<span class="HindiText">प्रमत्तसंयतों का स्वरूप पहले कह आये हैं जिनका संयम प्रमाद सहित नहीं होता है उन्हें '''अप्रमत्तसंयत''' कहते हैं। अर्थात् संयत होते हुए जिन जीवों के पंद्रह प्रकार का प्रमाद नहीं पाया जाता है, उन्हें अप्रमत्तसंयत समझना चाहिए।</span></p> | </span>=<span class="HindiText">प्रमत्तसंयतों का स्वरूप पहले कह आये हैं जिनका संयम प्रमाद सहित नहीं होता है उन्हें '''अप्रमत्तसंयत''' कहते हैं। अर्थात् संयत होते हुए जिन जीवों के पंद्रह प्रकार का प्रमाद नहीं पाया जाता है, उन्हें अप्रमत्तसंयत समझना चाहिए।</span></p> |
Revision as of 11:52, 25 December 2022
राजवार्तिक/9/1/18/590/6 पूर्ववत् संयममास्कंदं पूर्वोक्तप्रमादविरहात् अविचलितसंयमवृत्ति: अप्रमत्तसंयत: समाख्यायते। =पूर्ववत् प्रमत्तसंयत संयम को प्राप्त करके, प्रमाद का अभाव होने से अविचलित संयमी अप्रमत्त संयत कहलाता है।
धवला 1/1,1,15/178/7 प्रमत्तसंयता: पूर्वोक्तलक्षणा:, न प्रमत्तसंयता अप्रमत्तसंयता: पंचदशप्रमादरहितसंयता इति यावत् । =प्रमत्तसंयतों का स्वरूप पहले कह आये हैं जिनका संयम प्रमाद सहित नहीं होता है उन्हें अप्रमत्तसंयत कहते हैं। अर्थात् संयत होते हुए जिन जीवों के पंद्रह प्रकार का प्रमाद नहीं पाया जाता है, उन्हें अप्रमत्तसंयत समझना चाहिए।
गोम्मटसार जीवकांड/45/97 संजलणणोकसायाणुदयो मदो जदा तदा होदि। अपमत्तगुणो तेण य अपमत्तो संजदो होदि। =जब क्रोधादि संज्वलन कषाय और हास्य आदि नोकषाय इनका मंद उदय होता है, तब अप्रमत्तगुण प्राप्त हो जाने से वह अप्रमत्त संयत कहलाता है।45। ( द्रव्यसंग्रह टीका/13/34/10 )।
और देखें संयत ।