अवस्थान: Difference between revisions
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<span class="GRef">धवला/4/1,3,2/29/6</span> <p class=" PrakritText ">उववादो एयविहो। सो वि उप्पण्णपढमसमए चेव होदि। | <span class="GRef">धवला/4/1,3,2/29/6</span> <p class=" PrakritText ">उववादो एयविहो। सो वि उप्पण्णपढमसमए चेव होदि। | ||
<p class="HindiText">='''1.''' अपने उत्पन्न होने के ग्राम में, नगर में, अथवा अरण्य में—सोना, बैठना, चलना आदि व्यापार से युक्त होकर रहने का नाम स्वस्थान-स्वस्थान अवस्थान है। | <p class="HindiText">='''1.''' अपने उत्पन्न होने के ग्राम में, नगर में, अथवा अरण्य में—सोना, बैठना, चलना आदि व्यापार से युक्त होकर रहने का नाम स्वस्थान-स्वस्थान अवस्थान है। <span class="GRef">( धवला 4/1,3,58/121/3 )</span> उत्पन्न होने के ग्राम, नगर अथवा अरण्यादि को छोड़कर अन्यत्र गमन, निषीदन और परिभ्रमण आदि व्यापार से युक्त होकर रहने का नाम विहारवत् स्वस्थान है। <span class="GRef">( धवला/7/2,6,1/300/5)</span> <span class="GRef">(गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/543/939/11 )</span>। <br> | ||
'''2.''' उपपाद (अवस्थान क्षेत्र) एक प्रकार का है। और वह उत्पन्न होने (जन्मने) के पहले समय में ही होता है—इसमें जीव के समस्त प्रदेशों का संकोच हो जाता है।</p> | '''2.''' उपपाद (अवस्थान क्षेत्र) एक प्रकार का है। और वह उत्पन्न होने (जन्मने) के पहले समय में ही होता है—इसमें जीव के समस्त प्रदेशों का संकोच हो जाता है।</p> | ||
Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
धवला/4/1,3,2/29/6
उववादो एयविहो। सो वि उप्पण्णपढमसमए चेव होदि।
=1. अपने उत्पन्न होने के ग्राम में, नगर में, अथवा अरण्य में—सोना, बैठना, चलना आदि व्यापार से युक्त होकर रहने का नाम स्वस्थान-स्वस्थान अवस्थान है। ( धवला 4/1,3,58/121/3 ) उत्पन्न होने के ग्राम, नगर अथवा अरण्यादि को छोड़कर अन्यत्र गमन, निषीदन और परिभ्रमण आदि व्यापार से युक्त होकर रहने का नाम विहारवत् स्वस्थान है। ( धवला/7/2,6,1/300/5) (गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/543/939/11 )।
2. उपपाद (अवस्थान क्षेत्र) एक प्रकार का है। और वह उत्पन्न होने (जन्मने) के पहले समय में ही होता है—इसमें जीव के समस्त प्रदेशों का संकोच हो जाता है।
जीवों के विभिन्न अवस्थान होते हैं; जैसे - स्वस्थान स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, उपपाद आदि । - देखें क्षेत्र ।