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([[पद्मपुराण]] सर्ग ९/३७/श्लोक) राम लक्ष्मण के वनवास होनेपर (१) इसने भरतपर चढ़ाई कर दी (२५-२६) नर्तकियों के वेष में गुप्त रहकर (९५-९६) उन वनवासियों ने इसे वहाँ जाकर बाँध लिया (१२७-१२८) परन्तु दया पूर्ण सीताने इसे छुडा दिया (१४६) अन्त में दीक्षा ले ली (१६१)।<br>[[Category:अ]] | ([[पद्मपुराण]] सर्ग ९/३७/श्लोक) राम लक्ष्मण के वनवास होनेपर (१) इसने भरतपर चढ़ाई कर दी (२५-२६) नर्तकियों के वेष में गुप्त रहकर (९५-९६) उन वनवासियों ने इसे वहाँ जाकर बाँध लिया (१२७-१२८) परन्तु दया पूर्ण सीताने इसे छुडा दिया (१४६) अन्त में दीक्षा ले ली (१६१)।<br> | ||
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(पद्मपुराण सर्ग ९/३७/श्लोक) राम लक्ष्मण के वनवास होनेपर (१) इसने भरतपर चढ़ाई कर दी (२५-२६) नर्तकियों के वेष में गुप्त रहकर (९५-९६) उन वनवासियों ने इसे वहाँ जाकर बाँध लिया (१२७-१२८) परन्तु दया पूर्ण सीताने इसे छुडा दिया (१४६) अन्त में दीक्षा ले ली (१६१)।