आतपन योग: Difference between revisions
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<span class="GRef"> कार्तिकेयानुप्रेक्षा/450 </span><span class="PrakritText">दुस्सह-उवसग्गजई आतावण-सीय-वाय-खिण्णो वि। जो णवि खेदं गच्छदि कायकिलेसो तवो तस्स।</span> <span class="HindiText">=दु:सह उपसर्ग को जीतने वाला जो मुनि '''आतापन''', शीत, वात वगैरह से पीड़ित होने पर भी खेद को प्राप्त नहीं होता, उस मुनि के कायक्लेश नाम का तप होता है।</span><br /> | <span class="GRef"> कार्तिकेयानुप्रेक्षा/450 </span><span class="PrakritText">दुस्सह-उवसग्गजई आतावण-सीय-वाय-खिण्णो वि। जो णवि खेदं गच्छदि कायकिलेसो तवो तस्स।</span> <span class="HindiText">=दु:सह उपसर्ग को जीतने वाला जो मुनि '''आतापन''', शीत, वात वगैरह से पीड़ित होने पर भी खेद को प्राप्त नहीं होता, उस मुनि के कायक्लेश नाम का तप होता है।</span><br /> | ||
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Revision as of 16:30, 26 February 2023
सर्वार्थसिद्धि/9/19/438/11 आतपस्थानं वृक्षमूलनिवासो निरावरणशयनं बहुविधप्रतिमास्थानमित्येवमादि: कायक्लेश:। =आतापनयोग, वृक्षमूल में निवास, निरावरण शयन और नानाप्रकार के प्रतिमास्थान इत्यादि करना कायक्लेश है। ( राजवार्तिक/9/19/13/619/15 ), ( धवला 13/5/4,26/58/4 ), ( चारित्रसार/136/2 ), ( तत्त्वसार 7/13 )
कार्तिकेयानुप्रेक्षा/450 दुस्सह-उवसग्गजई आतावण-सीय-वाय-खिण्णो वि। जो णवि खेदं गच्छदि कायकिलेसो तवो तस्स। =दु:सह उपसर्ग को जीतने वाला जो मुनि आतापन, शीत, वात वगैरह से पीड़ित होने पर भी खेद को प्राप्त नहीं होता, उस मुनि के कायक्लेश नाम का तप होता है।
अन्य योग और कायक्लेश सम्बन्धित जानकारी हेतु देखें कायक्लेश ।