बीजसम्यक्त्व: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
|||
Line 31: | Line 31: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: ब]] | [[Category: ब]] | ||
[[Category: | [[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Revision as of 19:02, 15 February 2023
सिद्धांतकोष से
राजवार्तिक/3/36/2/201/12 दर्शनार्या दशधा - आज्ञामार्गोपदेशसूत्रबीजसंक्षेपविस्तारार्थावगाढपरमावगाढरुचिभेदात् । =आज्ञा, मार्ग, उपदेश, सूत्र, बीज, संक्षेप, विस्तार, अर्थ, अवगाढ और परमावगाढ रुचि के भेद से दर्शनार्य दश प्रकार हैं। ( आत्मानुशासन/11 ); ( अनगारधर्मामृत/2/62/185 )
आत्मानुशासन/13 आकर्ण्याचारसूत्रं मुनिचरणविधे: सूचनं श्रद्दधान:, सूक्तासौ सूत्रदृष्टिर्दुरधिजमगतेरर्थसार्थस्य बीजै:। कैश्चिज्जातोपलब्धेरसमशमवशाद्बीजदृष्टि: पदार्थान्, संक्षेपेणैव बुद्धवा रुचिमुपगतवान् साधु संक्षेपदृष्टि:।13। =.... जिन जीवादि पदार्थों के समूह का अथवा गणितादि विषयों का ज्ञान दुर्लभ है उनका किन्हीं बीजपदों के द्वारा ज्ञान प्राप्त करने वाले भव्यजीव के जो दर्शनमोहनीय के असाधारण उपशमवश तत्त्वश्रद्धान होता है उसे बीजसम्यग्दर्शन कहते हैं। ...( दर्शनपाहुड़/ टीका/12/12/20)।
अधिक जानकारी के लिए देखें - सम्यग्दर्शन I.1.1 ।
पुराणकोष से
सम्यग्दर्शन के दस भेदों में पाँचवाँ भेद, अपरनाम बीजसम्यक्त्व । इससे बीजपदों को ग्रहण करने और उनके सूक्ष्म अर्थ को सुनने से भव्यजीवों की तत्त्वार्थ में रुचि उत्पन्न होती है । महापुराण 74. 439-440, 444, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.147