वाणिज्य: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> तीर्थंकर वृषभदेव द्वारा बताये गये आजीविका के षटकर्मों में पाँचवाँ कर्म । व्यापार द्वारा आजीविका करना वाणिज्य कर्म कहलाता है । <span class="GRef"> महापुराण 16.179-181, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.35 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> तीर्थंकर वृषभदेव द्वारा बताये गये आजीविका के षटकर्मों में पाँचवाँ कर्म । व्यापार द्वारा आजीविका करना वाणिज्य कर्म कहलाता है । <span class="GRef"> महापुराण 16.179-181, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_9#35|हरिवंशपुराण - 9.35]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
पुराणकोष से
तीर्थंकर वृषभदेव द्वारा बताये गये आजीविका के षटकर्मों में पाँचवाँ कर्म । व्यापार द्वारा आजीविका करना वाणिज्य कर्म कहलाता है । महापुराण 16.179-181, हरिवंशपुराण - 9.35
सिद्धांतकोष से
वाणिज्यकर्म, विषवाणिज्य, लाक्षावाणिज्य, दंतवाणिज्य, केशवाणिज्य, रसवाणिज्य - देखें सावद्य - 3।