इंद्रिय जय: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> <span class="GRef"> चारित्तपाहुड़/ मूल/29</span> <span class="PrakritText">अमण्णुण्णे य मणुण्णे सजीवदव्वे अजीवदव्वे य। ण करेइ रायदोसे पंचेंदियसंवरो अणिओ।</span> =<span class="HindiText">पाँचों इंद्रियों के विषयभूत अमनोज्ञ पदार्थों में तथा स्त्री-पुत्रादि जीवरूप और धन आदि अजीवरूप ऐसे मनोज्ञ पदार्थों में राग-द्वेष का न करना ही पाँच इंद्रियों का संवर है। (<span class="GRef">मूलाचार/17-21</span>)।</span></p> | <p> <span class="GRef"> चारित्तपाहुड़/ मूल/29</span> <span class="PrakritText">अमण्णुण्णे य मणुण्णे सजीवदव्वे अजीवदव्वे य। ण करेइ रायदोसे पंचेंदियसंवरो अणिओ।</span> =<span class="HindiText">पाँचों इंद्रियों के विषयभूत अमनोज्ञ पदार्थों में तथा स्त्री-पुत्रादि जीवरूप और धन आदि अजीवरूप ऐसे मनोज्ञ पदार्थों में राग-द्वेष का न करना ही पाँच इंद्रियों का संवर है। (<span class="GRef">मूलाचार/17-21</span>)।</span></p> | ||
<p class="HindiText">देखें [[ संयम#2.1 | संयम - 2.1]] </p> | <p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ संयम#2.1 | संयम - 2.1]] </p> | ||
Revision as of 12:17, 20 July 2023
चारित्तपाहुड़/ मूल/29 अमण्णुण्णे य मणुण्णे सजीवदव्वे अजीवदव्वे य। ण करेइ रायदोसे पंचेंदियसंवरो अणिओ। =पाँचों इंद्रियों के विषयभूत अमनोज्ञ पदार्थों में तथा स्त्री-पुत्रादि जीवरूप और धन आदि अजीवरूप ऐसे मनोज्ञ पदार्थों में राग-द्वेष का न करना ही पाँच इंद्रियों का संवर है। (मूलाचार/17-21)।
अधिक जानकारी के लिये देखें संयम - 2.1