मिथ्यादर्शन शल्य: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह टीका/42/183/10 </span><span class="SanskritText">बहिरंगबकवेषेण यल्लोकरंजना करोति तन्मायाशल्यं भण्यते। निजनिरंजननिर्दोषपरमात्मैवोपोदेय इति रुचिरूपसम्यक्त्वाद्विलक्षणं मिथ्याशल्यं भण्यते।...दृष्टश्रुतानुभूतभागेषु यन्नियतम् निरंतरम् चित्तम् ददाति तन्निदानशल्यमभिधीयते। | |||
</span>= <span class="HindiText">यह जीव बाहर में बगुले जैसे वेष धारणकर, लोक को प्रसन्न करता है, वह माया शल्य कहलाती है। ‘अपना निरंजन दोष रहित परमात्मा ही उपादेय है’ ऐसी रुचि रूप सम्यक्त्व से विलक्षण '''मिथ्याशल्य''' कहलाती है।...देखे सुने और अनुभव में आये हुए भोगों में जो निरंतर चित्त को देता है, वह निदान-शल्य है।।</span></p> | |||
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Revision as of 16:43, 19 January 2023
द्रव्यसंग्रह टीका/42/183/10 बहिरंगबकवेषेण यल्लोकरंजना करोति तन्मायाशल्यं भण्यते। निजनिरंजननिर्दोषपरमात्मैवोपोदेय इति रुचिरूपसम्यक्त्वाद्विलक्षणं मिथ्याशल्यं भण्यते।...दृष्टश्रुतानुभूतभागेषु यन्नियतम् निरंतरम् चित्तम् ददाति तन्निदानशल्यमभिधीयते। = यह जीव बाहर में बगुले जैसे वेष धारणकर, लोक को प्रसन्न करता है, वह माया शल्य कहलाती है। ‘अपना निरंजन दोष रहित परमात्मा ही उपादेय है’ ऐसी रुचि रूप सम्यक्त्व से विलक्षण मिथ्याशल्य कहलाती है।...देखे सुने और अनुभव में आये हुए भोगों में जो निरंतर चित्त को देता है, वह निदान-शल्य है।।
देखें शल्य ।