मनोगुप्ति: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> त्रिविध गुप्तियों में प्रथम गुप्ति । यह अहिंसाव्रत की पाँच भावनाओं में प्रथम भावना है । इसमें मन को अपने अधीन रखा जाता है और रौद्रध्यान आर्तध्यान, मैथुनसेवन, आहार की अभिलाषा, इस लोक और परलोक संबंधी सुखों की चिंता इत्यादि विकल्पों का त्याग किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 20.161, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 9.88 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> त्रिविध गुप्तियों में प्रथम गुप्ति । यह अहिंसाव्रत की पाँच भावनाओं में प्रथम भावना है । इसमें मन को अपने अधीन रखा जाता है और रौद्रध्यान आर्तध्यान, मैथुनसेवन, आहार की अभिलाषा, इस लोक और परलोक संबंधी सुखों की चिंता इत्यादि विकल्पों का त्याग किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 20.161, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 9.88 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/1187/1177/14 नोइंद्रियमतिरिह मन:शब्देनोच्यते। सा रागादिपरिणामै: सह एककालं आत्मनि प्रवर्तते।...तेन मनस्तत्त्वावग्राहिणो रागादिभिरसहचारिता या सा मनोगुप्ति:। =मनोमति ज्ञान रूप भाव मन को हम मन कहते हैं,वह रागादि परिणामों के साथ एक काल में ही आत्मा में रहते हैं। जब वस्तु के यथार्थ स्वरूप का मन विचार करता है तब उसके साथ रागद्वेष नहीं रहते हैं,तब मनोगुप्ति आत्मा में है ऐसा समझा जाता है ।
देखें गुप्ति ।
पुराणकोष से
त्रिविध गुप्तियों में प्रथम गुप्ति । यह अहिंसाव्रत की पाँच भावनाओं में प्रथम भावना है । इसमें मन को अपने अधीन रखा जाता है और रौद्रध्यान आर्तध्यान, मैथुनसेवन, आहार की अभिलाषा, इस लोक और परलोक संबंधी सुखों की चिंता इत्यादि विकल्पों का त्याग किया जाता है । महापुराण 20.161, पांडवपुराण 9.88