गज: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) एक सिंहरथासीन सामान्त । यह रावण की सहायता के लिए विशाल सेना लेकर संग्राम में भाग लेने आया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 57.46 </span></p> | |||
<p id="2">(2) चक्रवती के चौदह रत्नों में विजयार्ध शैल पर उत्पन्न एक सजीव रत्न । <span class="GRef"> महापुराण 37.84-86 </span></p> | |||
<p id="3">(3) वस्तु का प्रमाण-विशेष । इसे किष्कु भी कहते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.45 </span></p> | |||
<p id="4">(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के इकतीस पटलों में उनतीसवाँ पटल । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.47 </span></p> | |||
<p id="5">(5) हाथी । इसका उपभोग राजा के वाहन और उसकी सेना में होता था । <span class="GRef"> महापुराण 3.119,4.68,30.48, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.116 </span></p> | |||
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Revision as of 21:40, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- सौधर्म स्वर्ग का 29वाँ पटल व इन्द्रक–देखें स्वर्ग - 5.3।
- चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में से एक–देखें शलाकापुरुष - 2।
- क्षेत्र का प्रमाण विशेष/अपरनाम रिक्कू या किष्कु–देखें गणित - I.1.3।
पुराणकोष से
(1) एक सिंहरथासीन सामान्त । यह रावण की सहायता के लिए विशाल सेना लेकर संग्राम में भाग लेने आया था । पद्मपुराण 57.46
(2) चक्रवती के चौदह रत्नों में विजयार्ध शैल पर उत्पन्न एक सजीव रत्न । महापुराण 37.84-86
(3) वस्तु का प्रमाण-विशेष । इसे किष्कु भी कहते हैं । हरिवंशपुराण 7.45
(4) सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के इकतीस पटलों में उनतीसवाँ पटल । हरिवंशपुराण 6.47
(5) हाथी । इसका उपभोग राजा के वाहन और उसकी सेना में होता था । महापुराण 3.119,4.68,30.48, हरिवंशपुराण 1.116