Test5: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{| class="wikitable" | {| class="wikitable" | ||
|+ | |+ सामान्य प्ररूपणा | ||
|- | |- | ||
! गुणस्थान !! करण व्युच्छित्ति !! संभव करण | ! गुणस्थान !! करण व्युच्छित्ति !! संभव करण | ||
Line 43: | Line 43: | ||
| -- || अप्रत्याखान व प्रत्याखान चतुष्क; संज्वलन क्रोध, मान, माया; नोकषाय =20|| स्व स्व उपशम पर्यंत अपकर्षण | | -- || अप्रत्याखान व प्रत्याखान चतुष्क; संज्वलन क्रोध, मान, माया; नोकषाय =20|| स्व स्व उपशम पर्यंत अपकर्षण | ||
|- | |- | ||
| 1-11 क्षपक || उपरोक्त 19|| | | 1-11 क्षपक || उपरोक्त 19|| क्षयदेश पर्यंत अपकर्षण | ||
|- | |- | ||
| Example || उपरोक्त 20|| | | Example || उपरोक्त 20|| स्व स्व क्षयदेश पर्यंत अपकर्षण | ||
|- | |- | ||
| 11 उपशम स|| स. मिथ्यात्व व मिश्रमोह || | | 11 उपशम स|| स. मिथ्यात्व व मिश्रमोह || उपशम, निधत्ति व नि:कांचित बिना 7 | ||
|- | |- | ||
| 11 क्षायिक स.|| उपरोक्त 2 के बिना शेष 146, || | | 11 क्षायिक स.|| उपरोक्त 2 के बिना शेष 146, || संक्रमण रहित उपरोक्त =6 | ||
|- | |- | ||
| 12|| 5 ज्ञानावरण, 5 अंतराय, 4 दर्शनावरण,निद्रा व प्रचला = 16 || | | 12|| 5 ज्ञानावरण, 5 अंतराय, 4 दर्शनावरण,निद्रा व प्रचला = 16 || स्व स्व क्षयदेश पर्यंत अपकर्षण | ||
|- | |- | ||
| 1-13||अयोगी की सत्त्ववाली 85 || | | 1-13||अयोगी की सत्त्ववाली 85 || अपकर्षण | ||
|- | |- | ||
| 1-13|| | | 1-13|| जिस प्रकृति की जहाँ व्युच्छित्ति वहाँ पर्यंत|| बंध और उत्कर्षण | ||
|- | |- | ||
| 1-13|| | | 1-13|| स्व जाति प्रकृति की बंध व्युच्छित्ति पर्यंत|| संक्रमण | ||
|} | |} |
Revision as of 12:42, 9 February 2023
गुणस्थान | करण व्युच्छित्ति | संभव करण |
---|---|---|
1-7 | × | दशों करण |
8 | उपशम, निधत्त, नि:कांचित | दशों करण |
9 | × | शेष 7 |
10 | संक्रमण | शेष 7 |
11 | × | संक्रमणरहित 6 + मिथ्यात्व व मिश्र प्रकृति का संक्रमण भी= 7 |
12 | × | संक्रमण रहित -6 |
13 | बंध, उत्कर्षण, अपकर्षण व उदीरणा | संक्रमण रहित -6 |
14 | × | उदय व सत्त्व = 2 |
गुणस्थान | कर्म प्रकृति | संभव करण |
---|---|---|
सातिशय मिथ्यात्व | मिथ्यात्व | एक समयाधिक आवली तक उदीरणा |
1-4 | नरकायु | सत्त्व, उदय, उदीरणा =3 |
1-5 | तिर्यंचायु | सत्त्व, उदय, उदीरणा =3 |
4-6 | अनंतानुबंधी चतुष्क | स्व स्व विसंयोजना तक उत्कर्षण |
10 | सूक्ष्मलोभ | उदीरणा |
1-11 (सामान्य) | देवायु | अपकर्षण |
1-11 (उपशामक) | नरक द्वि. तिर्य. द्वि.; 4 जाति; स्त्यान त्रिक; आतप, उद्योत, सूक्ष्म, साधारण, स्थावर, दर्शनमोहत्रिक=19 | अपकर्षण |
-- | अप्रत्याखान व प्रत्याखान चतुष्क; संज्वलन क्रोध, मान, माया; नोकषाय =20 | स्व स्व उपशम पर्यंत अपकर्षण |
1-11 क्षपक | उपरोक्त 19 | क्षयदेश पर्यंत अपकर्षण |
Example | उपरोक्त 20 | स्व स्व क्षयदेश पर्यंत अपकर्षण |
11 उपशम स | स. मिथ्यात्व व मिश्रमोह | उपशम, निधत्ति व नि:कांचित बिना 7 |
11 क्षायिक स. | उपरोक्त 2 के बिना शेष 146, | संक्रमण रहित उपरोक्त =6 |
12 | 5 ज्ञानावरण, 5 अंतराय, 4 दर्शनावरण,निद्रा व प्रचला = 16 | स्व स्व क्षयदेश पर्यंत अपकर्षण |
1-13 | अयोगी की सत्त्ववाली 85 | अपकर्षण |
1-13 | जिस प्रकृति की जहाँ व्युच्छित्ति वहाँ पर्यंत | बंध और उत्कर्षण |
1-13 | स्व जाति प्रकृति की बंध व्युच्छित्ति पर्यंत | संक्रमण |