श्रीकंठ: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) विजयार्ध पर्वत को दक्षिणश्रेणी के मेघपुर नगर के वानरवंशी राजा विद्याधर अतींद्र तथा रानी श्रीमती का पुत्र । इसकी एक छोटी बहिन थी, जिसका नाम देवी था । बहनोई कीर्तिधवल ने इसे रहने के लिए वानरद्वीप दिया था । इसने किष्कु पर्वत पर चौदह योजन लंबाई-चौड़ाई का किष्कुपुर नाम का नगर बसाया था । नंदीश्वर द्वीप की यात्रा के लिए जाते हुए मानुषोत्तर पर्वत पर विमान की गति अवरुद्ध हो जाने में दु:खी होकर इसने इस पर्वत के आगे जाने का निश्चय किया था । फलस्वरूप यह वज्रकंठ पुत्र को राज्य सौंप करके निर्ग्रंथ मुनि हो गया था । वानरद्वीप में रहने से इसकी संतति वानरवंश के नाम से विख्यात हुई । <span class="GRef"> पद्मपुराण 6.3- | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) विजयार्ध पर्वत को दक्षिणश्रेणी के मेघपुर नगर के वानरवंशी राजा विद्याधर अतींद्र तथा रानी श्रीमती का पुत्र । इसकी एक छोटी बहिन थी, जिसका नाम देवी था । बहनोई कीर्तिधवल ने इसे रहने के लिए वानरद्वीप दिया था । इसने किष्कु पर्वत पर चौदह योजन लंबाई-चौड़ाई का किष्कुपुर नाम का नगर बसाया था । नंदीश्वर द्वीप की यात्रा के लिए जाते हुए मानुषोत्तर पर्वत पर विमान की गति अवरुद्ध हो जाने में दु:खी होकर इसने इस पर्वत के आगे जाने का निश्चय किया था । फलस्वरूप यह वज्रकंठ पुत्र को राज्य सौंप करके निर्ग्रंथ मुनि हो गया था । वानरद्वीप में रहने से इसकी संतति वानरवंश के नाम से विख्यात हुई । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#3|पद्मपुराण - 6.3-1]]51, 206 </span></p> | ||
<p id="2">(2) अनागत प्रथम प्रतिनारायण । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.569-570 </span></p> | <p id="2">(2) अनागत प्रथम प्रतिनारायण । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.569-570 </span></p> | ||
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Revision as of 22:35, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- इसको राक्षस वंशीय राजा कीर्तिधवल ने वानर द्वीप दिया था, जिससे आगे जाकर इसकी संतति से वानर वंश की उत्पत्ति हुई। - देखें इतिहास - 9.12।
- वेदांत की शिवाद्वैत शाखा के प्रवर्तक - देखें वेदांत - 7।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत को दक्षिणश्रेणी के मेघपुर नगर के वानरवंशी राजा विद्याधर अतींद्र तथा रानी श्रीमती का पुत्र । इसकी एक छोटी बहिन थी, जिसका नाम देवी था । बहनोई कीर्तिधवल ने इसे रहने के लिए वानरद्वीप दिया था । इसने किष्कु पर्वत पर चौदह योजन लंबाई-चौड़ाई का किष्कुपुर नाम का नगर बसाया था । नंदीश्वर द्वीप की यात्रा के लिए जाते हुए मानुषोत्तर पर्वत पर विमान की गति अवरुद्ध हो जाने में दु:खी होकर इसने इस पर्वत के आगे जाने का निश्चय किया था । फलस्वरूप यह वज्रकंठ पुत्र को राज्य सौंप करके निर्ग्रंथ मुनि हो गया था । वानरद्वीप में रहने से इसकी संतति वानरवंश के नाम से विख्यात हुई । पद्मपुराण - 6.3-151, 206
(2) अनागत प्रथम प्रतिनारायण । हरिवंशपुराण 60.569-570