कल्पव्यवहार: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> अंगबाह्यश्रुत के चौदह प्रकीर्णकों में नवम प्रकीर्णक । इसमें तपस्वियों के करणीय कार्यों की विधि का तथा अकरणीय कार्यों के हो जाने पर उनकी प्रायश्चित-विधि का वर्णन किया गया है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 125, 135 </span> | <span class="HindiText"> अंगबाह्यश्रुत के चौदह प्रकीर्णकों में नवम प्रकीर्णक । इसमें तपस्वियों के करणीय कार्यों की विधि का तथा अकरणीय कार्यों के हो जाने पर उनकी प्रायश्चित-विधि का वर्णन किया गया है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#125|हरिवंशपुराण - 10.125]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#135|हरिवंशपुराण - 10.135]] </span> | ||
Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
अंगबाह्यश्रुत के चौदह प्रकीर्णकों में नवम प्रकीर्णक । इसमें तपस्वियों के करणीय कार्यों की विधि का तथा अकरणीय कार्यों के हो जाने पर उनकी प्रायश्चित-विधि का वर्णन किया गया है । हरिवंशपुराण - 10.125,हरिवंशपुराण - 10.135