कल्पातीत: Difference between revisions
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<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/4/17/248/9 </span><span class="SanskritText">कल्पुषूपपन्ना: कल्पोपपन्ना: कल्पानतीता: कल्पातीताश्च।</span> =<span class="HindiText">जो कल्पों में उत्पन्न होते हैं वे कल्पोपपन्न कहलाते हैं और जो कल्पों के परे हैं वे '''कल्पातीत''' कहलाते हैं। | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/4/17/248/9 </span><span class="SanskritText">कल्पुषूपपन्ना: कल्पोपपन्ना: कल्पानतीता: कल्पातीताश्च।</span> =<span class="HindiText">जो कल्पों में उत्पन्न होते हैं वे कल्पोपपन्न कहलाते हैं और जो कल्पों के परे हैं वे '''कल्पातीत''' कहलाते हैं। <span class="GRef">( राजवार्तिक/4/17/223/2 )</span>।</span> | ||
<p><span class="HindiText"><strong > कल्पातीत देव सभी अहमिंद्र हैं</strong></span></p> | <p><span class="HindiText"><strong > कल्पातीत देव सभी अहमिंद्र हैं</strong></span></p> | ||
<p><span class="GRef"> राजवार्तिक/4/17/1/223/4 </span><span class="SanskritText">स्यान्मतम् नवग्रैवेयका नवानुदिशा: पंचानुत्तरा: इति च कल्पनासंभवात् तेषामपि च कल्पत्वप्रसंग इति; तन्न; किं कारणम् । उक्तत्वात् । उक्तमेतत्-इंद्रादिदशतयकल्पनासद्भावात् कल्पा इति। नवग्रैवेयकादिषु इंद्रादिकल्पना नास्ति तेषामहमिंद्रत्वात् ।</span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>-नवग्रैवेयक, नव अनुदिश और पंच अनुत्तर इस प्रकार संख्याकृत कल्पना होने से उनमें कल्पत्व का प्रसंग आता है ? | <p><span class="GRef"> राजवार्तिक/4/17/1/223/4 </span><span class="SanskritText">स्यान्मतम् नवग्रैवेयका नवानुदिशा: पंचानुत्तरा: इति च कल्पनासंभवात् तेषामपि च कल्पत्वप्रसंग इति; तन्न; किं कारणम् । उक्तत्वात् । उक्तमेतत्-इंद्रादिदशतयकल्पनासद्भावात् कल्पा इति। नवग्रैवेयकादिषु इंद्रादिकल्पना नास्ति तेषामहमिंद्रत्वात् ।</span>=<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>-नवग्रैवेयक, नव अनुदिश और पंच अनुत्तर इस प्रकार संख्याकृत कल्पना होने से उनमें कल्पत्व का प्रसंग आता है ? |
Revision as of 22:17, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/4/17/248/9 कल्पुषूपपन्ना: कल्पोपपन्ना: कल्पानतीता: कल्पातीताश्च। =जो कल्पों में उत्पन्न होते हैं वे कल्पोपपन्न कहलाते हैं और जो कल्पों के परे हैं वे कल्पातीत कहलाते हैं। ( राजवार्तिक/4/17/223/2 )।
कल्पातीत देव सभी अहमिंद्र हैं
राजवार्तिक/4/17/1/223/4 स्यान्मतम् नवग्रैवेयका नवानुदिशा: पंचानुत्तरा: इति च कल्पनासंभवात् तेषामपि च कल्पत्वप्रसंग इति; तन्न; किं कारणम् । उक्तत्वात् । उक्तमेतत्-इंद्रादिदशतयकल्पनासद्भावात् कल्पा इति। नवग्रैवेयकादिषु इंद्रादिकल्पना नास्ति तेषामहमिंद्रत्वात् ।=प्रश्न-नवग्रैवेयक, नव अनुदिश और पंच अनुत्तर इस प्रकार संख्याकृत कल्पना होने से उनमें कल्पत्व का प्रसंग आता है ? उत्तर-नहीं, क्योंकि, पहिले ही कहा जा चुका है कि इंद्रादि दश प्रकार की कल्पना के सद्भाव से ही कल्प कहलाते हैं। नव ग्रैवेयकादिक में इंद्रादि की कल्पना नहीं है, क्योंकि, वे अहमिंद्र हैं।
स्वर्ग विभाग–देखें स्वर्ग - 1.3।
पुराणकोष से
नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश तथा पाँच अनुत्तर विमानवासी देव । ये अहमिंद्र होते हैं । संसार के सर्वाधिक सुखों को पाकर भी ये विरागी होते हैं । महापुराण 57.16, हरिवंशपुराण 3.150-151