पक्ष: Difference between revisions
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< | <li id="1">व्यवहार काल का एक भेद । पंद्रह अहोरात्र (दिनरात्र) के समय को पक्ष कहते हैं । प्रत्येक मास में दो पक्ष होते हैं― कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष । <span class="GRef"> महापुराण 3. 21, 13. 2, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.21 </span></li> | ||
< | <li id="2">षट्कर्म जनित हिंसा-दोषों की शुद्धि का प्रथम उपाय । मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ भाव से समस्त हिंसा का त्याग करना पक्ष कहलाता है । <span class="GRef"> महापुराण 39.142-146 </span></li> | ||
जैन न्याय में वादी द्वारा कहे गए प्रथम वाक्य को प्रतिज्ञा वाक्य कहते हैं, जिसमें जो बात प्रतिवादी को सिद्ध करवानी होती है उसका उल्लेख किया जाता है। इसे ही पक्ष कहते हैं। <span class="GRef"> परीक्षा मुख 3.22 </span></ | <li id="3"> <span class="SanskritText"> '''पक्ष इति यावत्''' </span> | ||
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Revision as of 20:55, 3 April 2023
- व्यवहार काल का एक भेद । पंद्रह अहोरात्र (दिनरात्र) के समय को पक्ष कहते हैं । प्रत्येक मास में दो पक्ष होते हैं― कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष । महापुराण 3. 21, 13. 2, हरिवंशपुराण 7.21
- षट्कर्म जनित हिंसा-दोषों की शुद्धि का प्रथम उपाय । मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ भाव से समस्त हिंसा का त्याग करना पक्ष कहलाता है । महापुराण 39.142-146
- पक्ष इति यावत् जैन न्याय में वादी द्वारा कहे गए प्रथम वाक्य को प्रतिज्ञा वाक्य कहते हैं, जिसमें जो बात प्रतिवादी को सिद्ध करवानी होती है उसका उल्लेख किया जाता है। इसे ही पक्ष कहते हैं। परीक्षा मुख 3.22